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सप्तोपधान
उपधान मालामाहा
त्म्य
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नोबंधगोय सुंदर! तुममित्तो अयस-नीयगोत्ताणं । न य दुलहो तुह जम्मतरे वि एसो नमोकारो॥२॥ पंच नमोकारपभावओ य जम्मतरे वि किर तुज्झ । जालीकुलरूवारोग्य संपयाओ पहाणाओ ।। ३॥
अन्नं च इमाउ चिय न हुंति मणुया कयाधि जियलोए । दासा पेसा दुभगा नीया विगलिंदिया चे। ।। ४॥ किंघहणा जे गोयम! विहिणा एवं सुयंअहिलित्ता । सुयभणिय विहाणेणं सुद्धे सीले अभिरमिजा ॥५॥ ते जइ नो तेणं चिय भवेण निव्वाणमुत्तमं पत्ता। ताऽणुतरग्गे विजाइगुसु सुइरं अभिरमेउं ॥६॥ उत्तमकुलंमि उकिलह-सव्वंग-सुंदरा-पयडी। सयलकला पतहा जणमण-आणंदणा होउं ॥७॥ देविंदोवमरिद्धी दयावरा विणयदाणसंपन्ना । निश्चिन्नकामभोगा धम्म सयलं अणुढे॥८॥ सुहझाणानल-निद्दघाइ-काम्मिघणा महासत्त।। उपनविमलनाणा विहुयमला झत्ति सिझति ॥९॥ इय विमलफलं सुणिडं जिणस्स महमाणदेवसूरिस्स । वयणा उवहाणमिणं साहेहमहानिसीहाओ॥१०॥
__ तओ मालोच यूहणं करेइ। जहासावज-कजवजण निढरणुद्वाण विहिविहाणेण । दुकरउवहाणेणं बिना इव सिज्झए माला ॥१॥ परम-पयपुरी-पत्थियपवयण पाहेयपाणिपहियस्स ! पस्थाण-पढम-मंगल-माला पयडा परमपसवा ॥२॥ संतोसखग्गदारिय-मोहरिउत्तेण रुदविसयस्स । आर्णदपुरप्पवेसे चंदणमाला जिय निवस्स ॥३॥ अहवा दुजोह-मय-मोह-जोह विजयत्थमुजम परस्स । जीवजो हस्सेसा रणमाला इव सहइ माला ॥४॥
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