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________________ अजीवाणं । विविहोसहिजोएणं उप्पत्ती वणिया अस्थि ॥ ८८ ॥ बीए निमित्त पाहुड-नामे सिरिदिद्विवायसङ्घस्सं । विमितं भणित्थि करं ॥ ८९ ॥ तइए विज्जापाहुडसन्ने विजाण तह य मंताणं । उप्पत्ति| साहणाविहि-फलसंपत्तीउ कहियाओ ॥ ९० ॥ सिद्धाभिहपाहुडए चउत्थर सयलसिद्धलद्धीओ । कहियाउ संति | विम्य - सायरससिउदय सरिसाओ ॥ ९१ ॥ एए चउविहेसुचि पाहुडएसुं लहित्तु कोसलुं । सिरिपालित्तयसूरी देवाणवि दल माहप्पं ॥ ९२ ॥ तेसिं सुविराणं मुहकमलं जेण इकवारंपि । दिट्ठे नहु सो मणयंपि निचुई तं विणा लहइ ॥ ९३ ॥ नरवरसचिवाईहिं सेविज्जंतस्स तस्स सयकालं । साहूणवि होइ खणो न बत्तमित्ताकरणकज्जे ॥ ९४ ॥ तेसिं अणुग्गहट्ठा पालित्ती नामिया लिवी विहिया । तीइ गुरूणं पुरओ नियकज्जं विन्नवंति जया ॥ ९५ ॥ तया दक्खिणदेसे ससिरीयं मन्नखेडयं नयरं । लाडम्मि उ भरुयच्छं बलही नयरी सुरडाए ॥ ९६ ॥ तह गिरिनयर सिरिसुरसेण विसयम्मि महुरनयरी य । एएसुं ठाणेसुं विज्जइ संघो गुणमहग्घो ॥ ९७ ॥ अह मन्नखेडसंघो न गुरुं अन्नत्थ देइ विहरे । जं तत्थ निवो उग्गो अन्ने न गणइ तिणेणावि ॥ ९८ ॥ इतो सोरट्ठाए ढंकाभिपवयस्स सिहरम्मि । ढंकाभिहाणनयरे समत्थी नागज्जुणो जोगी ॥ ९९ ॥ संपत्तकणयलद्धी, दाणवसीकयसमग्गदेसजणो । सर्व दंसणवंद पभावहीणंति निंदे ॥ १०० ॥ इत्तो जत्ताईणं विग्धं धिज्जाइया कुणति सया । भरुयच्छे महुराए जिणभवणेसुं महाणिट्ठा ॥ १०१ ॥ विन्नत्तो पालितो वृत्तं तमिमं खु तेसि संघेहिं । तेणवि ते आइट्ठा कायषा कोमुईजत्ता ॥ १०२ ॥ तवयणेणं कत्तिय - सियपक्खे पडिवयादिणपभाए । पारद्धा जिणजत्ता सं
SR No.090451
Book TitleSamyktvasaptati
Original Sutra AuthorSanghtilakacharya
Author
PublisherNaginbhai Ghelabhai Zaveri Mumbai
Publication Year1972
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size12 MB
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