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________________ 1 सूरी। कीलाइ दिन्नचित्तो डिंभगणेहिं सह मिलेइ ॥ ७४ ॥ जा सगडपिंजएसुं चडेर ओयरह ताव आवेउं । केहिवि विउसनरेहिं डिंभा एवं समुल्लविया ॥ ७५ ॥ भो ! डिंभा कहह फुडं पालित्तयवाहणो कहिं बसही ? । सुरीहिवि ते नाया धुवं इमे वाइणो केऽवि ॥ ७६ ॥ तेसिं वंचिय दिहिं वसहिं गंतूण ओढिऊण पडं । चलणे पसारिकणं सुत्तो कवडेण मुणिराओ ॥ ७७ ॥ यसहीदारं पत्ता निषिजणं लक्खिऊण ते विवहा । कुकुडसरं कुणंता मज्झे पविसंति जा झति ॥ ७८ ॥ ता तद्धरिसणहेउ सूरीहि कओ बिरालउग्गसरो । तं सुणिय भणति बुहा अद्दुणावि जिया इमेणऽम्हे ॥ ७९ ॥ तिमिरेहिं व रविर्षिवं अम्हेहिं एस दुजओ नूणं । तो नमिउं सुरिपए विउसा पभणंति गाई ॥ ८० ॥ पारितय हसु फुडं सयलं महिमंडलं भमंतेणं । दिझे सुओ य कत्थवि चंदणरससीयलो अग्गी ॥ ८१ ॥ सिरिपालित्तयसरी विबुहाणं ताण मग्गओ भणइ । दिट्ठं सुयमणुहूयं वण्णिज्जंतं मए सुणह ॥ ८२ ॥ अयसाभिओगसंदूमियस्स पुरिसस्स सुद्धहिययस्स । होइ बहंतस्स फुडं चंदणरससीयलो अग्गी ॥ ८३ ॥ उत्तरमेयं लहिउं तओ पसंसंति पंडिया बहुसो । तुह चैव जए कित्ती मुणिराय ! नडीव नबेइ ॥ ८४ ॥ जुग्गे नाउं गुरुणा तप्पुरओ धम्मदेसणा विहिया । तं सुणिय केषि दिक्खं पडिवना केवि सङ्घत्तं ॥ ८५ ॥ बहुविहपभावणुभवकित्तिभरेणं दिसाउ धवलंतो । सिरिस तुंजयरेवय- तित्थेसु कुणेह जत्ताओ ॥ ८६ ॥ अह पत्तो खेडउरे तत्थ व सूरी लहेइ पुण्णवसा । जोणीनिमित्तविज्जा - सिद्धाभिहपाहुडे चउरो ॥ ८७ ॥ जोणीपाहुडनामे पढमे जीवाण तह
SR No.090451
Book TitleSamyktvasaptati
Original Sutra AuthorSanghtilakacharya
Author
PublisherNaginbhai Ghelabhai Zaveri Mumbai
Publication Year1972
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size12 MB
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