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पडिभणिया, भद्दे ! जो तुम्ह पुवभवभत्ता । देवो आसी सो सुयरूवेण तुहतियं पत्तो ॥ ६९ ॥ पमुइयहियया ५ * पुणरवि पुच्छइ भयचं ! सहाइ तुम्हाणं । चिट्ठइ सो सुरकीरो नवत्ति पसिऊण साहेह ।। ७० ॥ तेणवि भणिया जो है
तुह पुरओ चिढेइ भूसणसणाहो । सो एसो तियसवरो तुह पुषभवस्स पाणपिओ ॥ ७१ ॥ सा जोडियकरकमला तं| देवं भणइ साहु उवयरियं । जं जम्मसहस्सेहिवि, तुम्हाउ न ऊरिणं होमि ॥ ७२ ॥ तियसो तं पद जपइ, अज-18 दिणा सत्तमंमि दिवसम्मि । चविर सुरलोयाओ, खयरसुओऽहं भविस्सामि ।। ७३ ।। तत्थ तए पडियोहो, मह कायवत्ति तीइ सो भणिो । जइ मह होही नाणं, नूणं तो बोहइस्सामि ॥ ७४ ॥ इय सोऊणं देवो सपरियणो * झत्ति सुरपुरं पत्तो । मयणावलीवि निवेयसंगया विनवेइ नियं ॥ ७५ ॥ देव ! नराइभयेसुं बहुसो विविहाइँ विस-IN यसुक्खाई। अणुहवियाई तहाविदु मणतित्ति न होइ जीवस्स ॥ ७६ ॥ तो सुरभवम्मि भोगा तुम्ह समं नरभ-18 वम्मिवि पभुत्ता। तो पजत्तमिमहि, पसीय हे सामि! सिवमग्गं (गे) ॥ ७७ ।। राया भणेइ सुंदर ! कप्पलयं कहवि पाणिकमलगयं । परिहरइ कोऽवि कुसलो, किं सुविणेविहु कयावि पिए ! ॥ ७८ ॥ देवी जंपइ सामिय ! मुणेमि नेहाइ तुम्ह विहियाई । तहवि पसिऊण सिग्धं दिक्खत्थं मं विसजेसु ॥ ७९ ॥ तन्नेहमोहियमई पडिवयणं जा न देइ नरनाहो । ता सहसा गुरुपासे, सा पवज पवज्जेइ ॥ ८० ॥ बाहजलाविलनयणो पढमं मुणिपुंगवं नमइ राया। दुक्खसगग्गरवयणो मयणावलिअज्जियं पच्छा ॥ ८१ ॥ सिरिकेवलिणो पासे सावयधम्मं गहेवि नरनाहो । निय-12