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भी कभी तो ऐसा लगता है कि पूरा शिखर ही हिल रहा है तब भी निर्वाण की वे ज्योतियाँ अकम्प दिखाई देती हैं। ___कल वह सबकुछ नहीं था जो आज दिखाई दे रहा है, संभव है काल भी न रहे । लेकिन इससे प्रभु की शाश्वत ज्योति की निश्चलता को कहीं कोई खतरा नहीं हैं। काश, हम भी इन ज्योत्तियों के पास जाकर स्वयं को ज्योतिर्मय कर वह आत्मदीप जलाका प्रकाश की शाश्वत किरणों को प्राप्त कर सकते।
इस पवित्र तीर्थधाम की यात्रा हमारा अहोभाग्य है । यही तो वह पर्वत है जिसके कणकण में सिद्धत्व की आभा है। निर्वाण की ज्योति है । असंख्य वर्षों से मानव ही नहीं वरन् देवों ने इसकी पूजन-अर्चन कर जीवन को पवित्र किया। यहाँ का कंकर-कंकर सिद्ध आत्मा के चरण-कमलों के स्पर्श से पवित्र है । यात्रा के समय हृदय में जो हर्षोल्लास, प्रफुल्लता
और सहज आनन्द की उपलब्धि होती है वह अन्यत्र दुर्लभ है । इस पावन तीर्थ की याश, वंदना, दर्शन, संकटहारी, पुण्यकारी और पापनाशिनी है।
मारत का अतीत गौरवमय रहा है। विश्व के अनन्त प्राणी जन्म अज्ञान के अंधेरे में रास्ते टोह रहे थे तब इस देश के अनेकों महापुरुष, तीर्थकर, आचार्य एवं मुनि गहन चिन्तन की अतुल गहराइयों में पहुंच चुके थे।
सम्मेदशिखर जैनों का सबसे बड़ा एवं सबसे ऊँचा तीर्थ है । इस क्षेत्र के दर्शन मुझं सन् १९७१ में प्रथम बार हुए । रास्ते ज्ञात नहीं, फिर भी अकेला ही चल दिया।
इस अवसर पर पूज्य मासोपवासी मुनि सुपार्श्वसागर जी महाराज संघ सहित पधारे थे। मैं उनके साथ आया था। आचार्य श्री विमलसागरजी भी संघ सहित विराजमान थे । महाराज जी का आशीर्वाद लेकर चल दिया तथा धीरे-धीरे पर्वत की चोटी पर पहुंच गया । हृदय गद्गद हो गया और सन् ७१ से १५ तक प्रतिवर्ष यात्रा का आनन्द लेता आ रहा हूँ। आज भी वही चित्र आँखों के सामने है।
बिहार प्रान्त के गिरीडीह जिले में पारसनाथ स्टेशन से १४ कि०मी० की दूरी पर मधुबन है, मधुबन से १० मील दूर पालगंज नामक नाम है जहाँ पर एक शिखरबंद मंदिर है। उसमें एक चतुर्थ काल की भगवान की प्रतिमा विद्यमान है । यह क्षेत्र पालगंज राजा की जमींदारी में जमींदार स्वयं यात्रियों की सुख सुविना तथा यात्रा का प्रबन्ध करने थे ।
वर्तमान में सम्मेदशिखर पर्वतराज की ऊँचाई ४५७९ फुट है। इसका क्षेत्रफल (विस्तार) २५ वर्ग मी० में है । साधारण दिगम्बर जैन यात्रीगण रात्रि को १-२ बजे स्नान कर शुद्ध धुले वस्त्र पहन कर गिरिराज की वंदना को जाते हैं।