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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य = तैरने की इच्छा करने वाला, मोक्षफलाकाङ्क्षी = मोक्ष रूपी
फल को चाहने वाला, (अस्ति = है. सः = वह)। श्लोकार्थ - हे राजन्! सम्मेदशिखर की तीर्थयात्रा के लिये तैयार और
उत्सुक भव्यजीव सबसे पहिले सिद्धभगवन्तों की वन्दना करके और विधिवत् अर्थात् यथायोग्य ढंग से चारों संघों की पूजा करके बहुत सत्कार सहित चारों संघों के साथ होकर सम्मेदशिखर पर्वत की तीर्थवन्दना यात्रा करे। चारों संघ मुनिराज आर्यिका और इसी प्रकार गृहस्थ की मोटा श्रावक-श्राविका से कार में कहे गये हैं। ये चारों ही संघ नियम पालन करने रूप वृत्ति से सहित और निर्मलव्रत धारण करने वालों के कहे गये हैं | जो कोई भी मोहसागर को तैरने का इच्छुक है और मोक्षरूपी फल को चाहने वाला है वह इस प्रकार आगे बताये अनुसार सम्मेदाचल तीर्थराज
की वन्दना करें। स श्वेतवस्त्रमादाय कुर्यात्सम्मेदयात्रिकाम्। पुत्राभिलाषी योऽनित्यं स भूत्या पीतवस्त्रकः ।।४६।। सम्मेदयात्रां कुर्वीत सुपुत्रप्राप्तये ध्रुवम् । रोगातः कृष्णवस्त्राणि धृत्वा चेद्यात्रिको भवेत् ||४७ ।। दिनैः कतिपयैरेव सरोगोऽरोगतां व्रजेत्। सम्मेदयात्रिकश्चेद्धि शोकं कुत्रापि नाप्नुयात् ।।४८।। लक्ष्मीकामोनरो यस्तु स धृत्वा रक्तवाससी।
सम्मेदशैलराजस्य यात्रां कुर्यात्प्रयत्नतः ।।४६ ।। अन्वयार्थ · (यः मोक्षफलाकाङ्क्षी = जो मोक्षफल का आकांक्षी, स्यात् =
हो), सः = वह, श्वेतवस्त्रं = सफेद वस्त्र को, आदाय = पहिनकर, सम्मेदयात्रिका = सम्मेदाचल की वन्दना करने वाली यात्रा को, कुर्यात् = करें, यः = जो, पुत्राभिलाषी = पुत्र का इच्छुक, सः = वह, नित्यं = निश्चय ही. पीतवस्त्रक: = पीले वस्त्र धारण करने वाला. भूत्वा = होकर, सम्मेदयात्रां