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________________ द्वितीया - श्लोकार्थ वे दोनों मुनिराज तपोवन में आये है ऐसा सुनकर हर्ष से अत्यधिक प्रसन्न राजा चक्रवर्ती सगर ने उद्यान में जाकर सिर झुकाकर बार-बार उन मुनिराजों को बहुत देर तक प्रणाम किया। ६१ उद्यान में, गत्वा = जाकर, भूयः = बार-बार, शिरसा = सिर से, (तौ = उन दोनों मुनिराजों को) चिरं बहुत देर तक. प्रणनाम = प्रणाम किया । - · प्रणम्य बद्धाञ्जलिस्तौ = = अन्वयार्थ तौ उन दोनों मुनिराजों को, प्रणम्य प्रणाम कर, पश्चात् - बाद में विधिवत् = विधिपूर्वक संपूज्य = पूजा करके, सुखं सुख का आश्रितः = आश्रय लिये हुये, बद्धाञ्जलिः = हाथ जोड़े हुये, मनोभावं = मन गत भाव को, प्रकाशयन् = प्रकट करते हुये, (सः उस राजा ने), तौ दोनों मुनिराज से. पप्रच्छ श्लोकार्थ दोनों चारण ऋद्धिधारी भुनिराजों को प्रणाम करके और विधिसहित उनकी पूजा करके प्रसन्नचित्त होते हुये, हाथ जोड़े हुये व मन की बात प्रगट करते हुये उस राजा ने मुनिराजों से पूछा । पूछा । मोक्षः पश्चात्संपूज्य 11 विधिवत्सुखमाश्रितः । पप्रच्छ मनोभावं प्रकाशयन् ।। ३८ ।। = = यद्दिनादजितेशस्य सम्मेदपर्वते । श्रुतो मया मुने! तस्माद्दिनादत्युत्सुकं मनः || ३६ || अन्वयार्थ - = मुने हे मुनिराज ! यद्दिनात् = जिस दिन से सम्मेदपर्वते = सम्मेदशिखर पर अजितेशस्य = तीर्थङ्कर अजितनाथ का, मोक्षः = निर्वाण, मया = मेरे द्वारा, श्रुतः = सुना गया है, तस्मात् = उस, दिनात् = दिन से, (मे = मेरा), मनः = मन, अति = अत्यधिक उत्सुकं अत्यधिक उत्सुकं = उत्कंठित, भवति = हो रहा है ।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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