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________________ ५४ अन्वयार्थ तौ = वे दोनों भाई, धर्मवन्तौ = - श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य धर्मवान, भाग्यवन्तौ = = भाग्यवान्, भोगवन्तौ = भोग वैभव सम्पन्न, बभूवतुः कर्मवशतः कर्मोदय के अनुसार, तदा = तब एकः = अकेला, अनुजः = छोटा भाई रविषेण, मृत्युं = मरण को, अगात् = प्राप्त हो गया । - श्लोकार्थ दोनों ही भाई धर्म रूचि वाले, भाग्यशाली और भोग वैभव आदि से सम्पन्न थे। तभी कर्मोदय के कारण से एक अर्थात् छोटा भाई रविषेण मृत्यु को प्राप्त हो गया । ततः संमूच्छितो राजा मन्त्रिभिः प्रतिबोधितः । तदा सम्प्राप्य चैतन्यं विरक्तस्तद्गुणादभूत् ।।१७।। अनुप्रेक्षां हृदि संस्थाप्य द्वादशायं ततोऽचिरम् । ज्येष्ठपुत्राय तद्राज्यं दत्त्वा समगृहीत्तपः || १८ || अन्वयार्थ ततः उसके मर जाने से, M = राजा राजा जयसेन, सम्मूच्छितः तदा तब मन्त्रिभिः · उपचार किया हुआ पुनः होश मरण के कारण से विरक्तः = विरक्त = बेहोश, ( अभवत् = हो गया) मन्त्रियों द्वारा प्रतिबोधितः में लाया हुआ, चैतन्यं - होश को सम्प्राप्य = पाकर, तद्गुणात् = उसी कारण अर्थात् पुत्र अथवा मंत्रियों के समझाने रूप गुण से अर्थात् संसार से उदासीन, अमूत् = तदनन्तर, अयं = इस राजा ने अचिरं हृदय में, द्वादश = बारह अनुप्रेक्षां भावनाओं को, संस्थाप्य स्थापित करके, ज्येष्ठपुत्राय = बड़े बेटे धृतिषेण के लिये, तद्राज्यं = उस राज्य को, दत्त्वा = देकर, तपः = तपश्चरण, समगृहीत् = अङ्गीकार कर लिया। हो गया. ततः = जल्दी ही, हृदि = = = थे = + = श्लोकार्थ रविषेण के भर जाने पर राजा मूच्छित हो गया तो वह मन्त्रियों द्वारा पुनः प्रतिबोधित किया गया अर्थात् होश में लाया गया, तब होश आ जाने पर यह राजा पुत्र मरण के कारण से अथवा मंत्रियों के उपदेश से संसार से उदासीन हो गया और उसने
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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