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अन्वयार्थ तौ = वे दोनों भाई, धर्मवन्तौ =
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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य धर्मवान, भाग्यवन्तौ =
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भाग्यवान्, भोगवन्तौ = भोग वैभव सम्पन्न, बभूवतुः कर्मवशतः कर्मोदय के अनुसार, तदा = तब एकः = अकेला, अनुजः = छोटा भाई रविषेण, मृत्युं = मरण को, अगात् = प्राप्त हो गया ।
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श्लोकार्थ दोनों ही भाई धर्म रूचि वाले, भाग्यशाली और भोग वैभव आदि से सम्पन्न थे। तभी कर्मोदय के कारण से एक अर्थात् छोटा भाई रविषेण मृत्यु को प्राप्त हो गया ।
ततः संमूच्छितो राजा मन्त्रिभिः प्रतिबोधितः । तदा सम्प्राप्य चैतन्यं विरक्तस्तद्गुणादभूत् ।।१७।। अनुप्रेक्षां हृदि संस्थाप्य द्वादशायं ततोऽचिरम् । ज्येष्ठपुत्राय तद्राज्यं दत्त्वा समगृहीत्तपः || १८ ||
अन्वयार्थ ततः उसके मर जाने से,
M
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राजा
राजा जयसेन, सम्मूच्छितः
तदा तब मन्त्रिभिः
·
उपचार किया हुआ पुनः होश
मरण के कारण से विरक्तः = विरक्त
= बेहोश, ( अभवत् = हो गया) मन्त्रियों द्वारा प्रतिबोधितः में लाया हुआ, चैतन्यं - होश को सम्प्राप्य = पाकर, तद्गुणात् = उसी कारण अर्थात् पुत्र अथवा मंत्रियों के समझाने रूप गुण से अर्थात् संसार से उदासीन, अमूत् = तदनन्तर, अयं = इस राजा ने अचिरं हृदय में, द्वादश = बारह अनुप्रेक्षां भावनाओं को, संस्थाप्य स्थापित करके, ज्येष्ठपुत्राय = बड़े बेटे धृतिषेण के लिये, तद्राज्यं = उस राज्य को, दत्त्वा = देकर, तपः = तपश्चरण, समगृहीत् = अङ्गीकार कर लिया।
हो गया. ततः = जल्दी ही, हृदि
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=
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थे
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+
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श्लोकार्थ रविषेण के भर जाने पर राजा मूच्छित हो गया तो वह मन्त्रियों द्वारा पुनः प्रतिबोधित किया गया अर्थात् होश में लाया गया, तब होश आ जाने पर यह राजा पुत्र मरण के कारण से अथवा मंत्रियों के उपदेश से संसार से उदासीन हो गया और उसने