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________________ द्वितीया (इति = इस प्रकार), सुबुद्धिः = बुद्धिसम्पन्न, सः = वह राजा जयसेन, महान् = महान्. अभूत् = हो गया था। श्लोकार्थ - पृथ्वीपुर नगर में सम्यग्दृष्टि राजा जयसेन राज्य करता था उसतर्भानुराग निनामा धिंगत होता मा, जिससे वह बुद्धिमान राजा महान् बन गया था। जयसेना तस्य देवी सती गुणवती तथा । द्वयोर्बभूवतुः पुत्रौ द्वावेव शुभलक्षणौ ।।१४।। अन्वयार्थ - तस्य = उस राजा की, देवी = पत्नी, गुणवती = गुणों से परिपूर्ण, तथा = और, सती = शीलवती, जयसेना = जयसेना रानी, (आसीत् = शी), द्वयोः = उन दोनों अर्थात् जयसेन और जयसेना के, शुभलक्षणौ = शुभ लक्षणों वाले, द्वौ = दो. एव = ही, पुत्री = पुत्र, (आस्ताम् = थे)। श्लोकार्थ - उस राजा की जयसेना नामक, शीलवती और गुणवती रानी थी। राजा जयसेन और रानी जयसेना के शुभलक्षणों वाले दो ही पुत्र थे। धृतिषेणोऽग्रजस्तदविषेणोऽनुजः दम्पत्याभ्यां प्रजाभ्यस्तौ दधतुः सुखमुत्तमम् ।।१५।। अन्वयार्थ - (तत्र = उन दोनों पुत्रों में). अग्रजः = बड़ा भाई. धृतिषणः = धृतिषेण, तद्रविषेणः = उसका रविषेण, अनुजः = छोटा भाई, स्मृतः = याद रखे गये हैं. तौ = वे दोनों, दम्पत्याभ्यां = राजा रानी के लिये, प्रजाभ्यः = प्रजा के लिये, उत्तम = उत्तम, सुखं = सुख को, दधतुः = धारण करते थे। श्लोकार्थ • राजा के दोनों पुत्रों में धृतिषण बड़ा भाई और रविषेण छोटा था। वे दोनों राजा रानी और प्रजा के लिये उत्तम सुख को धारण करते थे अर्थात् उनके सुखी होने का कारण थे। धर्मवन्तौ भाग्यवन्तौ भोगवन्तौ बभूवतुः । तौ कर्मवशतो मृत्युमेकोऽगादनुजस्तदा ।।१६।। स्मृतः ।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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