SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीयोऽध्यायः अथ प्रणम्य देवेशं महावीरं महाप्रभुम् । श्रेणिक: समयं प्राप्य बद्धाञ्जलिरूयाच तम् ।।१।। अन्वयार्थ - अथ - अनन्तर, देवेश = देवाधिदेव जिनेन्द्र देव, महाप्रभु = परम प्रभु, महावीरं = महावीर को, प्रणम्य = प्रणाम करके (च और), समयं = समय को, प्राप्य = पाकर, बद्धाञ्जलिः = हाथ जोड़े हुये, श्रेणिकः = राजा श्रेणिक, तम् = उनको, उवाच = बोला। श्लोकार्थ - समोशरण में राजा श्रेणिक के पहुंच जाने के बाद कवि कह रहा है कि देवाधिदेव जिनेन्द्र भगवान् महावीर महाप्रभु को नमन करके तथा योग्य समय पाकर राजा श्रेणिक हाथ जोड़कर भगवान् से बोला। भगवन्मुक्तिदोऽसि त्वमद्वितीयो महीतले। शरणागतजीवानामार्तानां पालकः सदा ।।२।। अन्वयार्थ - भगवन्! = हे भगवन्! त्वम् = तुम, महीतले = पृथ्वी पर. अद्वितीयः = अद्वितीय, शरणागतजीवानां = शरण में आये भव्य जीवों के लिये. मुक्तिदः = मुक्ति देने वाले अर्थात् मुक्ति का मार्ग दिखाने वाले, आर्तानां = दुःखी प्रणियों के, सदा = हमेशा, पालकः = पालनकर्ता, असि = हो। श्लोकार्थ - हे भगवन! इस महीतल पर आप अद्वितीय हो, शरणागत भव्य जीवों को मुक्तिमार्ग के प्रदर्शक मुक्तिदाता हो, तशा दीन-दुखी जनों के सदा पालनकर्ता हो। संसारिणोऽत्रा ये जीवा नानाभ्रमभराकुलाः । सर्वदा यसमर्थास्ते संयमव्रतसाधने ।।३।।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy