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________________ प्रथमा तैरकर, मुक्तिपदं = मुक्तिस्थान अर्थात् सिद्धदशा को, गताः = चले गये अथांत प्राप्त हो गर्य, च = और, कति = कितने ही, ते - वे भव्य जीव, सद्धर्मकर्माश्रिताः = सम्यक् धर्म अर्थात् जिनेन्द्र प्रणीत अहिंसामयी धर्म को पालन करने रूप कर्म के आश्रित हो गये हैं अर्थात् सद्धर्म का पालन करने वाले हो गये हैं, यद्धयानोद्भवशुद्धभाववशतः == जिनके ध्यान से उत्पन्न शुद्ध भावना के कारण, अखिलजनः = सारा भव्य जनसमूह, तं = उन, महाघु = महान पूज्य, वीरं = भगवान् महावीर को, संभावयिता = सम्यक भावना से पूजता हुआ, ध्रुवं = निश्चित ही, अधुना = अब, सिद्धाय = सिद्ध होने के लिये, सम्प्रार्थते - प्रार्थना करता है। श्लोकार्थ - इस संसार में जिनकी उत्कृष्ट कृपा से भव्यजनों के समूह संसार सागर को तैर कर मुक्त हो जाते हैं तथा कुछ मव्यजीव सम्यक् धर्म का पालन करने में तत्पर हो जाते हैं । कवि भावना करता है कि जिनके ध्यान से शुद्धभावना उत्पन्न होती है जिसके वशीभूत होकर भव्यजन उन परमपूज्य परमात्मा महावीर को सम्यक भावना सहित पूजता हुआ अब निश्चित ही सिद्ध होने के लिये प्रार्थना करता है। (इति देवदत्तकृते सम्मेदशिखरमाहात्म्ये श्रीमहावीर श्रेणिकसमागमवर्णनं नाम प्रथमोऽध्यायः ।) (इस प्रकार कवि देवदत्तकृत सम्मेदशिखर माहात्म्य में श्रीमहावीर श्रेणिक समागम का वर्णन करने वाला प्रथम अध्याय समाप्त हुआ।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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