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________________ एकविंशतिः सामर्थ्याच्छुक्लध्यानस्य दग्ध्या कर्माणि सर्वथा । मुक्तिं जगाम तैः सार्धं भावमेनो भुनीशवाः !!! अन्वयार्थ - असौ = उन प्रभासेन मुनिराज ने, तपसा = तपश्चरण से, दग्धकर्मा = कर्मों को जलाने वाले, (भूत्वा = होकर), शुक्लध्यानात् = शुक्लध्यान से, मनः = मन को, सिद्धपदे = सिद्धपद में. निश्चलं = निश्चल, संयोज्य = लगाकर, केवलज्ञानं = केवलज्ञान को, आप्तवान् = प्राप्तकर लिया। (च - और), जीर्ण सृजमिव = जीर्ण कुम्हलायी पुष्पमाला के समान, तनु = शरीर को, त्यक्त्वा = छोड़कर, खलु = निश्चयार्थक पाद पूरक, सिद्धत्वं = सिद्धपद को, सङ्गतः = चले गये या प्राप्त हो गये। ततश्च = और उसके बाद, सः = उस, भावसेनाख्यः - भावसेन नामक, परम - उत्कृष्ट, धर्मभृत् = धर्मात्मा, नृपः = राजा ने, संघ = चतुर्विध संघ को, प्रपूज्य = पूजकर, च = और, एककोटिप्रमाणितान् = एक करोड, चतुप्रोक्ताशीतिलक्षसम्मितान् = चौरासी लाख, भव्यजीवकान् = भव्यजीवों को सार्धगान - साथ चलने वाला, विधाय = करके, सम्मेदभूभृतः = सम्मेदाचल पर्वत की, यात्रां =: यात्रा को, चक्रे = किया। तत्र = वहाँ गत्वा = जाकर, सः = उसने, लं = उस, सुवर्णभद्रकूट = सुवर्णभद्र कूट को. प्रपूज्य = पूजकर, भक्तिभावेन = भक्ति भाव से, ववन्दे = प्रणाम किया, च = और, उक्तैः = कहे गये, तैः = उन, साधुसत्तमैः = श्रेष्ठ साधुओं के, साध = साथ, भावतः -- भाव से, दिगम्बरः = दिगम्बर मुनि, भूत्वा = होकर तपः = तपश्चरण को, कृत्वा = करके, शुक्लध्यानस्य = शुक्लध्यान की, सामर्थ्यात् = सामर्थ्य से, कर्माणि - कर्मों को, सर्वथा = सर्व प्रकार से, दग्ध्वा = जला कर या नष्ट करके, मनीश्वरः == मुनिराज, भावसेनः = मावसेन, तैः = उन मुनिराजों के, सार्धं = साथ, मुक्तिं = मुक्ति को, जगाम = प्राप्त हुये या चले गये। श्लोकार्थ . फिर उन मुनिराज (प्रभासेन) ने तपश्चरण से कर्मों को जलाकर व शुक्ल ध्यान में मन को सिद्धपने में निश्चल करके केवलज्ञान प्राप्त कर लिया और जीर्ण पुष्षमाला के समान
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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