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________________ एकविंशतिः ५८७ देश, विख्यातः = प्रसिद्ध. (आसीत् = था), तत्र = उस देश में, शुभा ::: मुससुन्दर, सनयापुरी - मानी गमक नगरी, (आसीत् = थी)। श्लोकार्थ - जम्बूद्वीप के शुभ क्षेत्र स्वरूप आर्य खण्ड के भारत में एक अनङ्ग देश था उसमें एक सुन्दर नगरी गन्धपुरी थी। शान्तसेना रूपराशिः सा स्मृता पुत्रयर्जिता । एकस्मिन्समये राजा राझा सह स पुण्यभाक् । ४६।। गतो वनविहारर्थं वनं विकसितद्रुमम् । सोमसेनाभिधं तत्र चारणसिमन्वितम् ।।४।। मुनिं दृष्ट्वा यवन्धासौ तं पुनर्भक्तितोऽब्रवीत् । महान्पुत्राभिलाषो मे कथं सिध्यति भो मुने ।।४८।। अन्वयार्थ . (तत्र = वहाँ, प्रभासेननृपः = प्रभासेन राजा, आसीत् = था, तस्य = उसकी, राज्ञी = रानी), शान्तसेना = शान्तसेना, रूपराशिः = रूपवती-सुन्दरी, आसीत = थी, सा - वह, पुत्रवर्जिता = पुत्र रहित, स्मृता = कही गयी। एकस्मिन् = एक, समये = समय में, सः = वह, पुण्यभाक = पुण्यशाली, राजा = राजा प्रभासेन, राज्ञया = रानी के, सह = साथ, वनविहारार्थं = वन क्रीडा के लिये, विकसितगुमं = खिले हुये वृक्षों वाले, वनं = वन को, गतः = गया, तत्र = उस बन में, चारणधिसमन्वितम = चारण ऋद्धि से संयुक्त, सोमसेनामिधं -- सोमसेन नामक. मुनिं = मुनि को. दृष्ट्वा = देखकर, असौ - उसने, तं = उनको, भक्तितः - भक्ति से, ववन्ध = प्रणाम किया, पुनः = और फिर, अब्रवीत् = बोला. भो = हे, मुने = मुनिराज, मे = मेरी. महान् = अत्यधिक प्रबल, पुत्राभिलाष: = पुत्र की अभिलाषा, कथं = कैसे, सिध्यति = सिद्ध सफल होगी। श्लोकार्थ - वहाँ प्रभासेन नामक राजा राज्य करता था उसकी रानी शान्तसेना अतीव सन्दरी थी किन्त वह पत्र रहित कही गयी। एक दिन वह पुण्यशाली राजा रानी के साथ वनक्रीड़ा के लिये फूलों से लदे वृक्षों वाले वन में गया वहाँ उसने चारणऋद्धि सम्पन्न सोमसेन नामक मुनिराज को देखा उसने भक्ति से उनकी वन्दना की और फिर बोला - हे मुनिराज ! मेरी
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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