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________________ ५.४ श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य हुर्य एक वर्ष तक उग्र व महान् तपश्चरण किया । चैत्र कृष्णप्रतिपदि तपस्सन्दग्धकल्मषः । देवदारूतले ज्ञानं केवलं प्राप्तवान् प्रभुः ||३७।। अन्वयार्थ - तपस्सन्दग्धकल्मषः -- तपश्चरण से जला दिये कर्म कलंक जिन्होंने ऐने i : -- म ने, चैत्र कृष्णप्रतिपदि = चैत्र कृष्णा एकम के दिन, देवदारूतले = देवदारूवृक्ष के नीचे, केवलं = केवल, ज्ञानं = ज्ञान को प्राप्तवान = प्राप्त कर लिया। श्लोकार्थ · तपश्चरण से अपने कर्म कलंक को जला देने वाले उन प्रभु ने चैत्र कृष्णा एकम को देवदारू वृक्ष के नीचे केवल ज्ञान प्राप्त कर लिया। कृते समवसारेऽथ धनदेनाद्भुते विभुः । सहस्रसूर्यसदृशः स्वतेजोमण्डलाद्वभौ ।।३८।। अन्वयार्थ - अथ = इसके बाद, धनदेन = कुबेर द्वारा, कृते = रचे गये. अद्भुते = अद्भुत अर्थात् आश्चर्यकारी, समवसारे = समवसरण में, स्वतेजमण्डलात् = अपने तेज प्रभामण्डल के कारण, विभुः = भगवान्, सह सूर्यसदृशः = हजार सूर्यों के समान, बभौ = सुशोभित हुये। श्लोकार्थ - इसके बाद कुबेर द्वारा रचे गये अद्भुत समवसरण में अपने प्रभामण्डल के कारण भगवान् हजारों सूर्य के समान सुशोभित हुये। तत्रोक्तगणनाथाथैः स्तुतो द्वादशकोष्ठगैः । यन्दितः पूजितस्सर्वैः ददर्श कृपयाखिलान् ।।३६ ।। अन्वयार्थ - तत्र = उस समवसरण में, उक्तगणनाथाद्यैः = शास्त्र में जिनके नाम कहे गये हैं उन गणधर आदि द्वारा, स्तुतः = स्तुति किये जाते हुये, (च = और), द्वादशकोष्ठगैः = बारहों कोठों में स्थित, सर्वः = सभी भव्य जीवों द्वारा, वन्दितः = बन्दना किये गये, पूजितः = पूजा किये गये, (प्रभुः = भगवान् ने), कृपया = कृपा से, अखिलान् = सभी को, ददर्श = देखा | श्लोकार्थ - उस समवसरण में गणधरों द्वारा एवं बारहों कोठों में स्थित
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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