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________________ ५५३ विंशतिः तं श्रुत्वा श्रावकानां स व्रतं जग्राह सादरम् । अभूत्सम्यक्त्वसम्पन्नः पालयन् धर्ममुत्तमम् ।।१०।। अन्वयार्थ - तं = उस धर्म को, श्रुत्वा = सुनकर, सः = उसने. श्रावकानां - श्रावकों के व्रतं = व्रत को, सादरं = आदर सहित, जग्राह = ग्रहण किया, (तथा च = और), उत्तम = उत्तम, धर्म = धर्म को, पालयन = पालते हये, सम्यक्त्वसम्पन्नः = सम्यक्त्व से सम्पन्न अर्थात् सम्यग्दृष्टि, अभूत् = हो गया। श्लोकार्थ - उपर्युक्त बताये गये धर्म को सुनकर उस राजा ने श्रावकों कं व्रत को आदर सहित ग्रहण कर लिया और उस उत्तम धर्म का पालन करते हुये सम्यग्दृष्टि हो गया। चक्रेऽसौ न्यायतो राज्यं प्रजापालस्तदार्तिहृत् । एकदा पुनरप्यागात् वनं शुचिमनोहरम् ।।११।। अन्वयार्थ - तदार्तिहृत् = उनके दुःख को हरने वाले, प्रजापालः = प्रजापालक असौ = उस राजा ने, न्यायतः = न्याय से, राज्य = राज्य को, चक्रे == किया, एकदा = एक दिन. (असौ = वह), शुचिमनोहरं = पवित्रा मनोहर, वनं = वन को, पुनः = दुबारा, आगात् = आया । श्लोकार्थ - वहाँ आये हुये जगत् के लिये हितकारक या धन्य स्वरूप उन मुनि श्रेष्ठ को नमन करके और उनके मुख से शुद्ध मुनिधर्म को हर्ष सहित सुनकर वह राजा सावधान हो गया। श्रवणादेय वैराग्यं उत्पन्नं तस्य मानसे | तदा श्रीधरपुत्राय स्वराज्यं दत्तवान् नृपः ।।१३।। अन्वयार्थ - श्रवणात् = सुनने से, एव = ही, तस्य = उसके, मानसे : मन में, वैराग्यं = वैराग्य, उत्पन्नं = उत्पन्न हुआ, तदा = तभी, नृपः = राजा ने, स्वराज्यं = अपना राज्य, श्रीधरपुत्राय = श्रीधर नामक पुत्र के लिये, दत्तवान् = दे दिया। श्लोकार्थ - मुनिधर्म सुनने से ही उस राजा के मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया और उसने उसी समय अपना राज्य श्रीधर नामक पुत्र
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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