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________________ एकोनविंशतिः औरसानिय पुत्रांश्च ररक्ष स्वप्रजाः नृपः । न्यायवान् गुणवान् तद्वत् शीलवान् बुद्धिसागरः । १७ ।। = अन्वयार्थ तद्वत् = रानी के ही समान, न्यायवान् = न्यायवान्, गुणवान् गुणी, शीलवान् = शीलवान्, बुद्धिसागरः = विशाल बुद्धि वाला, नृपः राजा ने, औरसानिव अपने जाये पुत्रों के समान, स्वप्रजाः = अपनी प्रजा की च और पुत्रान् = पुत्रों की, ररक्ष = रक्षा की। = . श्लोकार्थ जैसी रानी थी वैसे ही राजा भी था उस न्यायी, गुणी, शीलवान् और मतिमान् राजा ने अपने जाये हुये पुत्रों के समान अपनी प्रजा की और पुत्रों की रक्षा की। एकदानन्तवीर्याख्यो शुद्धसम्यक्त्वसम्पन्नस्तेजसा ज्वलनप्रभः ||८|| मुनिर्वनमुपागतः । - r अन्वयार्थ एकदा एक दिन अनन्तवीर्याख्यः अनन्तवीर्य नामक शुद्धसम्यक्त्वसम्पन्नः = शुद्ध सम्यक्त्व से सम्पन्न, तेजसा तेज़ से, ज्वलनप्रभः = प्रकाशित है प्रभा या कान्ति जिसकी ऐसा वह कान्तिमान् मुनिः = मुनिराज वनम् वन में, |उपागतः = आये। - ५२७ - = श्लोकार्थ एक दिन अनन्तवीर्य नामक शुद्ध सम्यग्दृष्टि और तेजोमय कान्तिस्वरूप मुनिराज वन में आये । तमागतं समाकर्ण्य परिवारसमन्वितः । तद्वन्दनार्थं भूपालस्त्वरितं तमुपाययौ ।।६।। से. = = अन्वयार्थ तं = उन मुनिराज को, आगतं = आया हुआ, समाकर्ण्य - सुनकर, परिवारसमन्वितः परिवार सहित भूपालः = राजा, तद्वन्दनार्थं उनकी वन्दना करने के लिये, त्वरितं शीघ्रता तम् - उन मुनिराज के उपाययौ = समीप आ गया। श्लोकार्थ उन मुनिराज को आया हुआ सुनकर वह राजा परिवार सहित उनकी वन्दना करने के लिये शीघ्रता से उनके पास आ गया। =
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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