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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य कामना, (अस्ति = है), (तर्हि = तो), भक्त्या = भक्ति से, तत्
- उसको, अणत = सुनो। श्लोकार्थ - मैं श्री मुनिसुव्रतनाथ की कथा को और उस निर्जर कूट के
माहात्म्य को कहता हूं यदि तुम्हारे मन में कल्याण करने की कामना हो तो हे विद्वज्जनो! तुम उसे सुनो। द्वीपे जम्बूमति ख्याते भरतक्षेत्रामुत्तमम् ।
तत्राङ्गदेशे धम्पाख्यं पुरं स्वर्गपुरोपमम् ||४|| अन्वयार्थ . जम्बूमति = जम्बूवृक्ष वाले, ख्याते = सुप्रसिद्ध, द्वीपे = द्वीप
में, उत्तम = उत्तम, भरतक्षेत्रं = भरतक्षेत्र, (अस्ति = है), तत्र = उसमें. अङ्गदेशे = अङ्गदेश में, स्वर्गपुरोपमं = स्वर्ग के नगर के समान, चम्पाख्यं = चम्पा नामक, पुरं = नगर. अस्ति
= है या था। श्लोकार्थ - सुप्रसिद्ध जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में अङ्गदेश है उसमें स्वर्ग
के नगर की उपमा वाला एक चम्पापुर नामक नगर है। तत्राभूद्धरणीपालो हरिवर्भाभिधो महान् । महाप्रतापसन्दीप्तः सुकृताम्भोधिरुत्तमः ।।५।। वजसेना तथा तस्य महिषी शीलशालिनी।
सद्गुणा रूपराशिश्च शरच्चन्द्रसमानना ।।६।। अन्वयार्थ - तत्र = उस चम्पापुर में, हरिवर्माभिधः = हरिवर्मा नामक, महान्
= एक महान, महाप्रतापसन्दीप्तः = अत्यधिक प्रताप से कान्तिगान्, सुकृताम्भोधि: = पुण्यशाली, उत्तमः = उत्तम, धरणीपालः = राजा, अभूत् = था. तथा = और. शालिनी = शीलवती, सद्गुणा = सद्गुणों वाली, रूपराशिः = सौन्दर्यवती. शरच्चन्द्रसमानना = शरद् ऋतु के चन्द्रमा के
समान मुख वाली, महिषी = एक रानी, (आसीत् = थी)। श्लोकार्थ - उस चम्पापुर में हरिवर्मा नामक महान् प्रतापी, तेजपुञ्ज,
पुण्यशाली, उत्तम एक राजा था और उसकी बजसेना नामक शीलवती, सदगुणों वाली, सौन्दर्यवती, और शरदकालीन चन्द्रमा के समान मुख वाली एक रानी थी।