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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य मोक्षसिद्धि अर्थात् सिद्ध स्थान में, गतः = चले गये. भव्यवृन्दैः = भव्य जनों द्वारा, समाराधितं = अच्छी तरह से आराधना की गयी, (तं = उस), पूजितं = पूज्य, सम्बलाख्यं = सम्बल नामक कूट को, दास = हे सेवक!, त्वं = तू, स्मर = याद
कर या उसका स्मरण कर। श्लोकार्थ - जिस सम्बलकूट से तीर्थकर मल्लिनाथ भगवान् सम्यकतप
द्वारा कर्मों को जलाने वाले होकर सिद्ध स्थान को गये । उस भव्य जीवों से आराधित ए पूज्य सम्बल पार को हे सेवक
तुम याद रखो अर्थात् उसका स्मरण करो। {इति दीक्षिबानेमिदत्तविरचिते श्रीसम्मेदशैलमाहात्म्ये तीर्थङ्कर
मल्लिनाथवृत्तान्तसमन्वितं सम्बलकूट · वर्णनं
नामाष्ट दशमोऽध्यायः सम्पूर्णः ] इस प्रकार दीक्षित ब्रह्म नेमिदत्त द्वारा रचित श्री सम्मेद शैल माहास्य नामक काव्य में तीर्थकर मल्लिनाथ के वृतान्त से युक्त सम्बल कूट का वर्णन करने वाला यह
अठारहवां अध्याय सम्पूर्ण हुआ 1}