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________________ अष्टदशः ५१६ इन्द्रो बभूय धर्मात्मा द्वाविंशत्यब्धिजीयनः । अन्ते चावातरद्भूमौ वक्ष्येऽहं तत्कथां शुभाम् ।।५७।। अन्वयार्थ - ततः = दीक्षा ग्रहण करने के बाद, तपसा = तपश्चरण से, दग्धकल्मषः = पापों-कर्मों को जलाने वाले, च = और, सम्यक्तपः = समीचीन तप, तप्त्वा = तप कर, सन्यासे = सन्यासमरण में, त्यक्तदेहः = देह को छोड़ने वाले, असौ = वह मुनिराज, मुदा = प्रसन्नता से, षोडशम = सोलहवें, स्वर्गे = स्वर्ग में, द्वाविंशत्यधिजीवनः = बाईस सागर आयु वाले. धर्मात्मा = धर्माचरणशील, इन्द्रः = इन्द्र, बभूव = हो गये, अन्ते = आयु के अन्त में, (सः = वह इन्द्र), भूमौ = भूमि पर, अवातरत् = अवतरित हुआ, अहं = मैं, शुभां = शुम, तत्कथां = उसकी कथा को. वक्ष्ये = कहता हूं। श्लोकार्थ - दीक्षा ग्रहण करने के बाद तपश्चरण से पापों को नष्ट करने वाले सम्यक् तप तपकर और संन्यासमरण पूर्वक शरीर छोडने वाले वह मुनिराज प्रसन्नता से सोलहवें स्वर्ग में बावीस सागर आयु वाले धर्मात्मा इन्द्र हो गये । वह इन्द्र आयु के अन्त में भूमि पर अवतरित हुआ। कवि कहता है कि मैं उसकी शुभ कथा को कहता हूं। जम्बूद्वीपे योधदेशे श्रीपुरे प्रमदाकरे | अम्बदेशोऽभिधो राजा बभूवातीय धार्मिकः । १५८ ।। महिषी विजया तस्य तद्गर्भे स्वय॒तस्ततः । समयात्तत्यसेनाख्यः पुत्रोऽभूद् गुणसागरः ।।६।। अन्वयार्थ - जम्बूद्वीपे = जम्बूद्वीप में, योधदेशे = योध नामक देश में, प्रमदाकरे - प्रकृष्ट आनन्द स्वरूप, श्रीपुरे = श्रीपुर नामक नगर में, अतीव = अत्यधिक, धार्मिकः = धर्मात्मा, अम्बदेशोऽभिधः = अम्बदेश नामक, राजा = राजा. बभूव = हुआ. तस्य = उस राजा की, विजया = विजया नाम की. महिषी = रानी, (आसीत् = थी), तद्गर्भ = उसके गर्भ में. स्वर्युतः = स्वर्ग से च्युत हुआ वह देव, (अवतरितः = अवतरित हुआ), ततः = उसके बाद, समयात् = गर्भ काल पूरा हो जाने
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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