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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य सम्बलाख्यः = सम्बल नामक, महान - एक महान, राजा = राजा, अभूत् = हुआ था. तस्य = उस राजा की. शीलसद्गुणसुन्दरी = शील और सद्गुणों की स्वामिनी व
सुन्दरी, राज्ञी = रानी, महासेना = महासेना. अभूत् = थी। श्लोकार्थ - अब पुनः कथा का प्रारंग है | चम्पापुर में एक महान राजा
सम्बल हुआ था जिसकी रानी महासेना शील, सौन्दर्य और सदगुणों की स्वामिनी थी। एकदा मन्दिरवने चारणो मुनिरभ्यगात् । धृतिषणा मुनियुतः तमाकर्ण्य स आगतः ।।५४।। समाजसहितस्तूर्ण वन्दनायाभ्यधायत ।
जैनधर्म ततः श्रुत्वा दीक्षां जग्राह भूपतिः ।।५५ ।। अन्वयार्थ - एकदा = एक दिन, मन्दिरवने = मन्दिर दन में. धृतिषणः =
धृतिषेण नामक, चारणः = चारणऋद्धिधारी, मुनिः= मुनिराज, मुनियुतः = मुनिराजों के साथ. अभ्यगात् = आये हुये हैं, (इति = इस प्रकार), तम् = उस समाचार को, आकर्ण्य = सुनकर, सः = वह राजा, समाजसहितः = समाज के साथ, (तत्र = वहाँ), आगतः = आ गया, वन्दनाय = वन्दना के लिये, तूर्ण =शीघ्र ही, (तत्समीपे = उनके पास), अभ्यधावत् = दौड़ा, ततः = उन मुनिराज से, जैनधर्म = जितेन्द्रिय धर्म को, श्रुत्वा= सुनकर, (सः = उस ). (भूपतिः = राजा ने ), दीक्षा
= मुनिदीक्षा को , जग्राह = ग्रहण कर लिया। श्लोकार्थ – एक दिन मन्दिर वन में धृतिषेण नामक चारण ऋद्धिधारी
मुनिराज कई मुनियों के साथ आये, उनेक आने का समाचार सुनकर समाज सहित वह राजा जल्दी ही वहाँ आ गया और मुनिराज की वन्दना के लिये दौड़ पड़ा। उन मुनिराज से
जितेन्द्रिय धर्म सुनकर उस राजा ने मुनिदीक्षा ग्रहण कर ली। ततः सम्यक्त्तपस्तप्त्वा तपसा दग्धकल्मषः । सन्यासे त्यक्तदेहोसौ स्वर्गेषोडशमे मुदा ।।५६।।