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________________ ५२ श्री सम्मेदशिखर पाहात्म्य के लिये, एनं - इन प्रभु को, समर्प्य = देकर, ततः = यहाँ से, स्वयं = स्वयं, हि = ही, सुरगणैः = देव समूहों के, सह = साथ, देवेन्द्र: :: देवेन्द्र, स्वर्ग = स्वर्ग को, जगाम :- चला गया। श्लोकार्थ - इसके बाद अर्थात् प्रभु का अभिषेक हो जाने पर इन्द्र ने दिव्य आभूषणों से उन देवेश अर्थात् तीर्थङ्कर शिशु को विभूषित करके मिथिलापुरी में आकर, राजा के भवन में सिंहासन पर प्रभु को विराजमान करके. विधिवत् हित स्वरूप उनकी पूजा करके एवं प्रभु के आगे ताण्डव नृत्य सम्बन्धी लीला की फिर उनका नाम मल्लिनाथ करके उन्हें माता को देकर स्वयं ही वहाँ से देवताओं के साथ वह देवेन्द्र स्वर्ग चला गया। सहस्रकोटिवर्षेषु गतेष्वरमहेश्वरात् । तदन्तरायुरभवत् मल्लिनाथो महाप्रभुः ।।३५।। अन्वयार्थ- अरमहेश्वरात् -- तीर्थकर अरनाथ के पश्चात्. सहस्रकोटिवर्षेषु = एक हजार करोड़ वर्ष, गतेषु = चले जाने पर, तदन्तरायुः ::. उसके ही भीतर है आयु जिनकी ऐसे, महाप्रभुः = महान प्रभु, मल्लिनाथः = मल्लिनाथ, अभवत् = हुये। श्लोकार्थ - तीर्थङ्कर अरनाथ के पश्चात् एक हजार करोड़ वर्ष बीत जाने पर उसके ही भीतर है आयु जिनकी ऐसे महाप्रभु तीर्थङ्कर मल्लिनाथ हुये थे। पञ्चपञ्चाशत्सहस्रप्रमितायुः स ईश्वरः ।। पञ्चविंशतिकोदण्डकायोऽभूज्जगतां पतिः ।।३६।। अन्वयार्थ - जगता = .जगत् के, पतिः = स्वामी, सः = वह, ईश्वरः = तीर्थङ्कर, पञ्चपञ्चाशत्सहस्रप्रमितायुः = पचपन हजार वर्ष प्रमाण आयु वाले, (च = और), पञ्चविंशतिकोदण्डकायः = पच्चीसधनुष ऊँची काया वाले. अभूत् = हुये। श्लोकार्थ - तीनों जगत् के स्वामी वह तीर्थङ्कर पचपन हजार वर्ष प्रमाण आयु वाले तथा पच्चीस धनुष प्रमाण ऊँची काया वाले हुये थे।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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