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________________ ४६४ श्री समोदशिखर माहात्म्य नगर का, नन्दसेनः = नन्दसेन नामक, महाशूरतमः = महान् योद्धाओं से सर्वश्रेष्ठ, राजा = राजा. अभवत् = हुआ। श्लोकार्थ – निन्यानवे करोड, निन्यान लाख. निन्यानवे हजार मुनिराज और अन्य भी अनेक भव्य जीव इस कट से मोक्ष को प्राप्त हुये हैं तथा इसके बाद सुप्रभ राजा के द्वारा चतुर्विध संघ की पूजा करके सम्मेदशिखर पर्वत की यात्रा की गयी। उस राजा की कथा को सुनो। जम्बूद्वीप में पश्चिमविदेह क्षेत्र में सकल नामक एक महान देश है उसमें भद्रपुर नाम का एक नगर सुशोभित होता है। उस नगर का राजा नन्दसेन एक सर्वश्रेष्ठ योद्धा था | विजयाख्या तस्य राज्ञी चतुर्था दान तत्परा । तया सह सुधर्मात्मा भुजन् भोगान्महीपतिः ।।५।। विचार्यासी बहुदानानि दत्तवान् प्रतिवासरम् । दूरीकृत्य स दीनानां दुःखं वाञ्छितदानतः ।।६०।। सर्वसद्गुणसम्पन्नो रराज क्षितिमण्डले । एकदासौ सभामध्ये सिंहासनगतो नृपः ।।६१।। सज्जीकृत्य स्वात्मानं बभौ भानुरिवापरः । वनपालस्तदाभ्येत्य प्रसूननिचयं वरम् ।।२।। अथ नृपस्य पुरतः सुरभीकृतं वै दिङ्मुखम् । एकं कुसुममादाय कौतुकेन महीपतिः ।।६३।। भामयामास वेगेन करस्थं हर्षिताननः । तस्मात् प्रपात भ्रमरो मृत एय सभाभुवि ।।६४।। अन्वयार्थ .. तस्य = उस राजा की, विजयाख्या = विजया नामक, राज्ञी = रानी, चतुर्धा - चार प्रकार से. दानतत्पर = दान देने में उत्सुक व प्रवीण, (आसीत् = थी), तया = उसके, सह - साथ. भोगान् = भोगों को, भुञ्जन् = भोगते हुये, सुधर्मात्मा = सद्धर्म का पालन करने वाले, असौ = उस, महीपतिः = राजा ने, विचार्य = सोच समझकर, प्रतिवासरं = प्रत्येक दिन, बहुदानानि = बहुत दान, दत्तवान् = दिया, (इति = इस || ||
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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