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________________ सप्तदशः Andr श्लोकार्थ श्लोकार्थ ४७७ राजा हुआ, तामा = उस रूपराशि के समान उज्ज्वला = धनपति नामक पण राजा की, रूपराशिः इव उज्ज्वल, धनसेना = धनसेना नामक, राज्ञी = रानी, (आसीत् थी। । — - उस क्षेमपुर नगर में एक पुण्यात्मा राजा धनपति हुआ था जिसकी रानी धनसेना रूप राशि के समान उज्ज्वल थी । सः धर्मेणाकरोद्राज्यं नीतिमान् न्यायवित्तमः । सुखमत्यः प्रजास्तत्रस्थाः देशस्य पुण्यतः । १७ ।। — = = अन्वयार्थ – नीतिमान् = नीतिमान्, न्यायवित्तमः - श्रेष्ठ न्याय वेत्ता, सः = उस राजा ने, धर्मेण = धर्म मार्ग से, राज्यं = राज्य, अकरोत् किया, देशस्य देश के. पुण्यतः = वहाँ स्थित प्रजाः - प्रजा, सुखमत्यः (आसन् = थी । = = = पुण्य से तत्रस्थाः सुख से पूर्ण, = — . श्रेष्ठ न्याय वेत्ता और नीतिपूर्ण आचरण करने वाले उस राजा ने धर्म मार्ग से राज्य किया। देश के पुण्य से वहाँ की प्रजा सुख से रहती थी । प्रातरुत्थाय ताः सर्वाः सुखाधिययं गतास्ततः । वर्धतां वर्धतां भूप! इत्याशीर्वचनं जगुः ||८| • अन्वयार्थ सुखाधिक्यं अत्यधिक सुख को गताः = प्राप्त ताः सर्वाः उस सारी प्रजा ने प्रातः = सुबह, उत्थाय = उठकर, भूपः हे राजन्!, वर्धतां वर्धताम् अतिशय वृद्धि को प्राप्त होओ, इति = इस प्रकार, आशीर्वचनं - आशीष वचनों को, जगु स्पष्ट रूप से कहते थे। X = - श्लोकार्थ – अत्यधिक सुख को प्राप्त उनकी सारी प्रजा प्रातः उठकर - "हे राजन् तुम्हारी वृद्धि हो, वृद्धि हो" इस प्रकार आशीष वचन बोलती थी । तेन राज्यं धनपतेस्तथा महीभर्तुरवर्धत | यथा निशापतेर्बिम्बं प्रजानेत्राभिनन्दितम् ||६||
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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