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________________ ४५५ षष्ठदशः श्लोकार्थ - जम्बू नामक महाद्वीप के उत्तम भरतक्षेत्र में कुरूजाङ्गल नामक सुप्रसिद्ध और धर्मात्माओं का सागर स्वरूप एक देश है या था। हस्तिनागपुरे तत्र कुरुवंशेऽतिनिर्मले । सूर्यषेणोऽभवदाजा तेजसा सूर्यसन्निभः ।।१३।। श्रीकान्ता तस्य महिषी भूमिगा श्रीरिवापरा । सती धर्मयुता शीलराशिः सर्वगुणान्विता ।।१४।। अन्वयार्थ - तत्र = उस देश में, हस्तिनागपुरे = हस्तिनागपुर नगर में, अतिनिर्मले = अत्यधिक विमल, कुरुवंशे = कुरुवंश में, तेजसा = कान्ति से, सूर्यसन्निभः = सूर्य के समान प्रभा वाला, सूर्यषेणः = सूर्यषेण नामक, राजा = राजा. अमवत् = हुआ। तस्य = उस राजा की, श्रीकान्ता = श्रीकान्ता नामक. सर्वगुणान्विता = सारे गुणों से युक्त, शीलराशिः = अतिशय शीलवती. सती = पतिव्रतधर्म का पालन करने वाली, धर्मयुता = धर्मानुरागिणी, भूमिगा = भूमि रहने वाला, अपर। - दूसरी, श्रीः इव = लक्ष्मी के समान, महिषी = रानी, अभवत् = थी। श्लोकार्थ .. कुरूजाङ्गल देश के हस्तिनागपुर नगर में अत्यधिक विमल कुरूवंशोत्पन्न राजा सूर्यषेण हुये जो कान्ति से सूर्य के समान थे। उनकी रानी श्रीकान्ता सर्वगुणसम्पन्न, शीलवती, पतिव्रत धर्म का पालन करने वाली, धर्मानुरागिणी, भूमि पर रहने वाली दूसरी लक्ष्मी के समान थी। षण्मासस्याग्रतश्चास्य भवने धनयः स्वयम् । शक्राज्ञप्तः सुररत्नानि ववर्ष धनवन्मुदा ।।१५।। अन्वयार्थ – अस्य = उस राजा के, भवने = भवन में, षण्मासस्य = छह माह के, अग्रतः = पहिले से, शक्राज्ञप्तः = शक्र की आज्ञा से युक्त, स्वयं = खुद. धनदः = धनपति कुबेर ने, मुदा = प्रसन्नता से, घनवत् = बादलों के समान, सुररत्नानि = देवताओं के अमूल्य रत्न, ववर्ष = बरसा दिये। श्लोकार्थ – इस सूर्यषेण राजा के महल में छह माह पहिले से ही इन्द्र
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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