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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य अन्वयार्थ – च = और, यस्मिन् = जिस कूट पर, श्रीशान्तिनाथेन =
तीर्थकर शंतिनाथ द्वारा, मासावधियोगसिद्धः = एक माह तक योग सिद्ध पुरूषार्थो से, वासं = निवास. विधाय = करके, उदारबुद्धया = विस्तृत केवलज्ञान रूप बुद्धि से, सिद्धालयः = सिद्धालय, लब्धः = प्राप्त किया, (तं = उस), प्रभासफूट = प्रभासकूट को, शिरसा = सिर से, नमामि =
नमस्कार करता हूं। श्लोकार्थ - जिस कूट पर तीर्थकर शांतिनाथ ने एक माह तक सिद्ध
योगों से निवास करके सिद्धालय को प्राप्त किया उस कूट
को मैं सिर झुकाकर प्रणाम करता हूं। {इति दीक्षितब्रह्मनेमिदत्तविरचिते सम्मेदशैलमाहात्म्ये तीर्थङ्कर
शातिगायतपुरमा प्रभार कूटननं नाम
पंचदशमोऽध्यायः सम्पूर्णः।) इस प्रकार दीक्षित ब्रह्मनेमिदत्त द्वारा रचित सम्मेदशैलमाहात्म्य नामक काव्य में तीर्थङ्कर शांतिनाथ के वृत्त को बताने वाले प्रभासकूट का
वर्णन करने वाला यह पन्द्रहवां अध्याय सम्पूर्ण हुआ।