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पञ्चदशः
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त्रयाधीशः तेजसां राशिः श्रीनिवासः सतां पतिः ।
सार्वः सर्वगुणाम्भोधिः प्रभुः सज्जनवन्दितः ।।२१।। अन्वयार्थ - प्रभुः = वह भगवान्, त्रयाधीशः = तीन ज्ञान के स्वामी, तेजसा
राशि: = कान्ति के भण्डार, श्रीनिवासः = लक्ष्मी के आलय. सतां = सज्जनों के, पतिः = स्वामी, सार्वः = सभी के अपने हितैषी, सर्वगुणाम्भोधिः = सभी गुणों के सागर, (च = और),
सज्जनवन्दितः = सज्जनों द्वारा वन्दनीय, (आसीत् = थे)। श्लोकार्थ – वह भगवान् तीन ज्ञान के स्वामी, कान्ति के धनी, लक्ष्मी के
निवास, सज्जनों के स्वामी, सबके हितैषी, सभी गुणों के समुद्र समान स्वामी, और सज्जनों द्वारा वंदनीय थे। अथैरायतमारुह्य सगीर्वाणसुरेश्वरः ।
तूर्ण समागमत्तत्र महामोदसमन्वितः ।।२२।। अन्वयार्थ – अथ = इसके बाद, ऐरावतं = ऐरावत हाथी पर. आरूह्य
-- चढ़कर, महामोदसमन्वित: = अत्यधिक आनंद से भरा हुआ, सगीर्वाणसुरेश्वरः = देवताओं के साथ इन्द्र, तत्र =
वहाँ, तूर्ण = जल्दी ही समागमत् = आ गया। श्लोकार्थ - प्रभु का जन्म होने पर अत्यधिक आनंद से भरा हुआ इन्द्र
ऐरावत हाथी पर चढकर देवताओं के साथ हस्तिनागपुर में
राजा के घर पर आ गया। युक्त्या प्रभुमथादाय शक्र आकाशवमना ।
उदीरयञ्जयध्वानं गतः स्वर्णादिमञ्जसा ||२३|| अन्वयार्थ – अथ = तत्पश्चात्, युक्त्या - युक्ति से, प्रभु = तीर्थङ्कर
शिशु को, आदाय = लेकर, जयध्वानं - जयध्वनि को, उदीरयन = बोलते हुये, अजसा = यथा रीति. आकाशवम॑ना
= आकाश मार्ग से, स्वर्णाद्रिं = सुमेरू पर, गतः = गया। श्लोकार्थ - तत्पश्चात् युक्ति से तीर्थंकर शिशु को लेकर जय ध्वनि
बोलते हुये यथायोग्य आकाश मार्ग से सुमेरू पर्वत पर चला गया।