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________________ पञ्चदशः ४33 त्रयाधीशः तेजसां राशिः श्रीनिवासः सतां पतिः । सार्वः सर्वगुणाम्भोधिः प्रभुः सज्जनवन्दितः ।।२१।। अन्वयार्थ - प्रभुः = वह भगवान्, त्रयाधीशः = तीन ज्ञान के स्वामी, तेजसा राशि: = कान्ति के भण्डार, श्रीनिवासः = लक्ष्मी के आलय. सतां = सज्जनों के, पतिः = स्वामी, सार्वः = सभी के अपने हितैषी, सर्वगुणाम्भोधिः = सभी गुणों के सागर, (च = और), सज्जनवन्दितः = सज्जनों द्वारा वन्दनीय, (आसीत् = थे)। श्लोकार्थ – वह भगवान् तीन ज्ञान के स्वामी, कान्ति के धनी, लक्ष्मी के निवास, सज्जनों के स्वामी, सबके हितैषी, सभी गुणों के समुद्र समान स्वामी, और सज्जनों द्वारा वंदनीय थे। अथैरायतमारुह्य सगीर्वाणसुरेश्वरः । तूर्ण समागमत्तत्र महामोदसमन्वितः ।।२२।। अन्वयार्थ – अथ = इसके बाद, ऐरावतं = ऐरावत हाथी पर. आरूह्य -- चढ़कर, महामोदसमन्वित: = अत्यधिक आनंद से भरा हुआ, सगीर्वाणसुरेश्वरः = देवताओं के साथ इन्द्र, तत्र = वहाँ, तूर्ण = जल्दी ही समागमत् = आ गया। श्लोकार्थ - प्रभु का जन्म होने पर अत्यधिक आनंद से भरा हुआ इन्द्र ऐरावत हाथी पर चढकर देवताओं के साथ हस्तिनागपुर में राजा के घर पर आ गया। युक्त्या प्रभुमथादाय शक्र आकाशवमना । उदीरयञ्जयध्वानं गतः स्वर्णादिमञ्जसा ||२३|| अन्वयार्थ – अथ = तत्पश्चात्, युक्त्या - युक्ति से, प्रभु = तीर्थङ्कर शिशु को, आदाय = लेकर, जयध्वानं - जयध्वनि को, उदीरयन = बोलते हुये, अजसा = यथा रीति. आकाशवम॑ना = आकाश मार्ग से, स्वर्णाद्रिं = सुमेरू पर, गतः = गया। श्लोकार्थ - तत्पश्चात् युक्ति से तीर्थंकर शिशु को लेकर जय ध्वनि बोलते हुये यथायोग्य आकाश मार्ग से सुमेरू पर्वत पर चला गया।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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