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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य होने पर स्वयं इन्द्र ने कहा था कि भरत क्षेत्र में अभी तुम ही अकेले सम्यग्दृष्टि हो। हे राजशिरोमणि उनके मुख से जैसा सुना था यहाँ तुम वैसे ही देखे गये हो - इस प्रकार कहकर उस अम्बिक नामक देव ने उस सम्यग्दृष्टी राजा की बहुत प्रकार से प्रार्थना व प्रशंसा की तथा उसके लिये एक अत्युत्तम एवं प्रभावोत्पादक ध्वनि चाली एक भेरी देकर कहा इस भेरी की ध्वनि को सुनने से यहाँ करोडों रोगों की हानि होगी। परोपकारहेतोः देवनिर्बन्धतो नृपः ।
तां भेरिकां च जग्राह विश्वरोगोपशान्तये ।।७१।। अन्वयार्थ . देवनिर्बन्धतः = देव के आग्रह से. सः = उस, नृपः = उस
राजा ने, परोपकारहेतोः = दूसरों का उपकार करने के निमित्त से, च = और, विश्वरोगोपशान्तये = सभी के सारे रोगों को मिटाने के लिये, ता = उस, भेरिकां = भेरी को, जग्राह =
ग्रहण कर लिया। रलोकार्थ - देव के आग्रह से उस सजा ने परोपकार करने के हेतु से
और सभी के सारे रोगों को शान्त करने के लिये वह मेरी ग्रहण कर ली। तस्या उपर्यसौ राजा चतुरो मानवोत्तमान् ।
संस्थाप्य सादरं देवं यम्बिकं विससर्ज वै ।।७२।। अन्वयार्थ · तस्याः = उस भेरी के. उपरि = विषय में, असौ = उस, राजा
= राजा ने, चतुरः = चार, मानवोत्तमान = उत्तम मनुष्यों को, संस्थाप्य = नियुक्त करके, वै = निश्चित ही. सादरं हि = आदर के साथ ही, अम्बिकं = अम्बिक नामक, देवं - देव
को, विससर्ज = विदा किया। श्लोकार्थ · उस भेरी को बजाने के विषय में उस राजा ने चार उत्तम
मनुष्यों को नियुक्त करके निश्चित ही आदर सहित उस अम्बिक नामक देव को विदा किया।