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________________ चतुर्दश: शक्रादप्यधिकं सौख्यं भुक्त्वा राज्ये स ईश्वरः । प्रजाः च पालयामास पुत्रानिव सुनीतिवित् ||३०|| अन्ययार्थ - M = = सः = उन, सुनीतिवित् = नीत के जानकार, ईश्वरः = राजा धर्मनाथ ने शक्रादप्यधिकं शक्र से भी अधिक, सौख्यं सुख को, भुक्त्वा = भोगकर, च = और, राज्ये = राज्य में, पुत्रान् इव = पुत्रों के समान, प्रजाः प्रजा को, पालयामास = पाला । श्लोकार्थ नीति के जानकार उन राजा धर्मनाथ ने इन्द्र से भी अधिक सुख भोगकर राज्य में पुत्रों के समान प्रजा का पालन किया। एकदा सौधगो देवः सिहांसने विराजितः । धनेषु धनुरूद्वीक्ष्य नश्वरं नश्वरीं श्रियम् ||३१|| विचार्य मनसा तज वैराग्यं मोक्षकारणम् । अगमत्तत्क्षणादेव भव्यशीर्षशरोमणिः ||३२|| = = = अन्वयार्थ एकदा एक दिन, सौधगः = महल के ऊपर गये, (च और), सिंहासने = सिंहासन पर विराजमानः विराजमान हुये, भव्यशीर्षशिरोमणिः भव्यों में शीर्षशिरोमणि, देवः = उन राजा ने, धनेषु = बादलों में धनुः नष्ट होता हुआ या नश्वर, उद्वीक्ष्य = को, नश्वरीं नष्ट होने वाली, मनसा मन से, विचार्य विचार करके, तत्क्षणादेव उस क्षण से ही, तत्र मोक्षकारणं = मोक्ष के कारण, वैराग्यं - वैराग्य को, = प्राप्त हो गये। धनुष को नश्वरं = देखकर, श्रियं = लक्ष्मी, = ४०३ = ते चक्रुर्विमलविग्रहाः ||३३|| = = वहाँ, अगमत् श्लोकार्थ एक दिन महल की छत पर सिंहासन पर बैठे हुऐ भव्यों में शीर्ष शिरोमणि उन राजा ने बादलों में, धनुष को नष्ट होता अर्थात् नश्वर देखकर, लक्ष्मी भी नश्वर है ऐसा मन से विचार करके, उसी समय ही वहीं पर मोक्ष के कारण भूत वैराग्य को प्राप्त हो गये । लौकान्तिकास्तदाम्येत्य कलवर्णाङ्कितैः पदैः । तद्वैराग्यप्रशंसां
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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