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________________ श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य श्लोकार्थ उस राजगृह नगर में सुन्दर-सुगठित शरीर वाली, शरद ऋतु के चन्द्र सदृश मुख वाली सद्गुणों के लक्षण से सम्पन्न, निर्विकारचित्त वाली सुन्दरियाँ - स्त्रियाँ निवास करती थीं। तयोस्तत्र सुतावास्तां यौ द्वौ सद्भाग्यशालिनौ । एकोऽभयकुमारोन्यो वारिषेणः शुभाकृतिः ।। ६७ ।। ज्येष्ठो न्यायप्रवीणोऽभूत्तदन्यस्तापसोत्तमः । जो = - = 1 द्वाभ्यां शुशुभे सूर्यचन्द्राभ्यामिव संततम् ||६८ ।। अन्वयार्थ तयोः = राजा श्रेणिक और रानी चलना के, याँ द्वी दो, सद्भाग्यशालिनौ अच्छे भाग्योदय वाले, सुतौ = पुत्र, आस्ताम् = हुये, तत्र = उन दोनों में, एक एक, अभयकुमारः : अभयकुमार, अन्यश्च और दूसरा, वारिषेण: वारिषेण, शुभाकृतिः = सुन्दर आकार वाला. (आसीत् था), ज्येष्ठः = बड़ा पुत्र न्यायप्रवीणः न्यायविद्या में चतुर, तदन्यः = उससे दूसरा, तापसोत्तमः = उत्तमतपस्वी, (आसीत् = था). सूर्यचन्द्राभ्यामिव = सूर्य और चन्द्रमा के समान, द्वाभ्यां दोनों के द्वारा, संततम् विस्तार को प्राप्त, स= वह देश, शुशुभे = शोभा को प्राप्त हुआ। 11 = = श्लोकार्थ राजा श्रेणिक और रानी चेलना के जो दो पुत्र हुये थे उनमें अभय कुमार ज्येष्ठ थे और न्याय नीति में निपुण थे । उनसे छोटे थे वारिषेण जो श्रेष्ठ तपस्वी थे जैसे सूर्यचन्द्र से कान्ति सर्वत्र फैल जाती है वैसे ही उन दोनों राजकुमारों से अच्छी तरह से विस्तार को प्राप्त देश शोभा को प्राप्त हुआ । वने राजगृहस्यान्ते उज्ज्वलाः पंच पर्वताः । विपुलाचलनामैको वैभाराख्यो द्वितीयकः ||६६ ॥ रत्नाचलस्तृतीयश्च चतुर्थश्चोलपर्वतः । २६ - - J 1 हेमाचलः पञ्चमश्च पञ्चैते पर्वताः स्मृताः ।।७०1। जम्बूद्वीपे प्रसिद्धास्ते तेषां यो विपुलाचलः 1 प्रभोः समवसारं श्रीमहावीरस्य तंत्र वै ।।७१।।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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