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________________ श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य ३६८ श्लोकार्थ एक दिन कार्तिक कृष्णा प्रतिपदा को सोयी हुई रानी ने प्रभातबेला में सोलह स्वप्नों को देखा । स्वप्नान्ते मत्तमातङ्गं शरच्चन्द्रप्रभोज्ज्वलम् । मुखं प्रविष्टमालोक्य प्रबुद्धा विस्मिताऽभवत् । १२२ ।। अन्वयार्थ स्वप्नान्ते = स्वप्न दर्शन के अन्त में, शरच्चन्द्रप्रभोज्ज्वलं - शरत्कालीन चन्द्रमा की कान्ति से उज्ज्वल - धवल, मुख मुख में प्रविष्टं प्रविष्ट होते हुये मत्तमातङ्गं = मदोन्मत्त हाथी को, आलोक्य = देखकर, प्रबुद्धा आश्चर्यचकित अभवत् = = t = जाग गयी, विस्मिता हुई । · == श्लोकार्थ- सोलह स्वप्नों को देखने के अन्त में शरद ऋतु के चन्द्रमा मुख मैं के समान उज्ज्वल कान्ति वाले मत्त हाथी को अपने प्रविष्ट होता हुआ देखकर वह रागी जाग गयी और आश्चर्य को प्राप्त हुई । ततः पत्युः समीपं सा प्राप्य स्वप्नानवोचत । तन्मुखात्तफलं श्रुत्वा महामोदमवाप सा ||२३|| = अन्वयार्थ - ततः = उसके बाद पत्युः = पति की समीपं = समीपता को, प्राप्य = प्राप्त करके, सा= वह रानी, स्वप्नान् = स्वप्नों से. = कहने लगी, तन्मुखात् = राजा के मुख को अवोचत तत्फलं स्वप्नों का फल श्रुत्वा = सुनकर, सा = वह, महामोदं = महा आनन्द को अवाप = प्राप्त हुई । = P श्लोकार्थ - उसके बाद वह रानी पति के समीप गई तथा स्वप्नों को कहने लगी। पति के मुख से स्वप्नों का फल सुनकर वह रानी अत्यंत हर्ष को प्राप्त हुई T गर्भागतस्त्रयज्ञानेन्द्रो यदा तदा मरुतोऽभयत् । जगत्प्रसादमापेदे निर्मलं गगनं भूत् ।।२४।। अन्ययार्थ यदा = जब, त्रयज्ञानेन्द्रः = तीन ज्ञान का स्वामी इन्द्र, मरुतः - वह देवता, गर्भागतः = गर्भ में आया, अभवत् तदा = तब, जगत् = सारे जगत् ने, प्रसादं 11 हो गया. प्रसन्नता को
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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