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________________ द्वादशः = राजा ने, वीरसंकुलं = वीर संकुल नाम, तत्कूटं = उस पर्वत की कूट को. अभ्यवन्दत = प्रणाम किया, भक्त्या = भक्ति से, संपूज्य = उसे पूजकर, विधिवत् = नियमपूर्वक, जैनी = जैनेश्वरी, दीक्षिका = मुनिदीक्षा को, जग्राह := ग्रहण कर लिया। एकार्बुदनवप्रोक्तः = एक अरब नौ, कोटिभव्यैः = करोड़ भव्यों के, समं = साथ, शास्त्रोक्तविधिना = शास्त्र में कहे उपाय से, घोरं = उग्न –कठिन, तपः = तपश्चरण को, कृत्वा = करके, अष्टकर्मणां = आठों कर्मों का नाशं = विनाश, कृत्वा - करके, फूटात् = इस कूट से, मुक्तिं = मोक्ष को, गतः = चला गया, ते - वे मुनिराज, सानन्दं = आनन्द सहित, मुक्तिं = मुक्ति को, आप्गुवन = प्राप्त हो गये। श्लोकार्थ – इस प्रकार वह सुप्रभ राजा मुक्तिमार्ग को सुगम जानकर प्रसन्न हुआ। मुनि आर्यिका संघ की भक्ति से पूर्ण वह एक अरब चौरासी करोड़ भव्य जीवों के साथ सम्मेदशिखर पर्वत पर गया। वहाँ उसने वीरसकुल नामक कूट को प्रणाम किया भक्ति से उसकी पूजा की और उसने नियमपर्वक एक अरब नौ करोड भव्य जीवों के साथ जैनेश्वरी दीक्षा को ग्रहण कर लिया। फिर शास्त्रों में कथित उपाय से कठिन तपश्चरण करके और आठों कर्मों का नाश करके इस कूट से मोक्ष चला गया। वे मुनिराज भी आनन्द सहित मुक्ति को प्राप्त हुये। यतो गतः श्री विमलेश्वरः शिवम् । तदन्विता वै बहवश्शिवालयम् ।। सुभक्तिमुक्तिप्रदमर्चनाद् ध्रुवम् । नमामि कूटं किल वीरसकुलम् ||८|| अन्वयार्थ – यतः = जिस कूट से, श्रीविमलेश्वरः = श्री विमलनाथ प्रभु, शिवं = मोक्ष को, गतः = गये, (च = और), बहवः = बहुत सारे, तदन्विताः = उनका अनुसरण करने वाले मुनिराज, वै = निश्चित ही. शिवालयं = सिद्धालय को. (गता: = चले गये). अर्चनात् = पूजन से, ध्रुवं = नियम से, सुभक्तिमुक्तिप्रदं =
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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