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एकादेशः
श्लोकार्थ
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वाला मानकर और भेंट देकर, विजयेश्वरं विजय जिनका ऐश्वर्य है ऐसे विजेता, शरण्यं = शरण पाने का आश्रय मानकर, शरणं गताः = उनकी शरण में चले गये।
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तथा शत्रुओं द्वारा नष्ट न हो सकने वाले उनके पक्ष वाले राजाओं ने विविध वस्तुयें भेंट में प्रस्तुत कर उन्हें विजेता और शरण का आश्रय मानकर उनकी शरण में चला गया । परैरखण्डितं राज्यं संप्राप्य जगदीश्वरः । नरेन्द्रकन्या सहितः सुखमन्यभूत् ४५
परमं
अन्वयार्थ – परैः = शत्रुओं द्वारा अखण्डितं = खण्डित न किया जाने योग्य, राज्यं = राज्य को, संप्राप्य = प्राप्त करके, जगदीश्वरः जगत् के प्रभु राजा श्रेयांसनाथ ने नरेन्द्र कन्यासहितः
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राज कन्याओं से परिणय करके उनके साथ रहते हुये, परमं = उत्कृष्ट, सुखं = सुख का अन्वभूत् = अनुभव किया। श्लोकार्थ - शत्रुओं द्वारा खण्डित न किये जाने योग्य राज्य को प्राप्त करके जगत् के प्रभु राजा श्रेयांसनाथ ने राज कन्याओं से परिणय करके उनके साथ रहते हुये उत्कृष्ट सुख का अनुभव
किया 1 आद्विचत्वारिंशल्लक्षवर्षं सुखमयं नृपः । कृत्या राज्यं हतारातिर्बसन्ततुं समैक्षत ||४६ ।। अन्वयार्थ - हतारातिः = नष्ट कर दिये है शत्रु जिसने ऐसा यह, नृपः राजा श्रेयांसनाथ ने आद्विचत्वारिंशल्लक्षवर्ष बयालीस लाख वर्ष पर्यन्त, सुखमयं सुखपूर्ण, राज्यं राज्य को. कृत्वा = करके, बसन्तु वसन्त ऋतु को, समैक्षत = देखा। श्लोकार्थ – शत्रुओं को नष्ट करने वाले राजा श्रेयांसनाथ ने बयालीस लाख वर्ष तक सुखमय राज्य को करके एक बार बसन्त ऋतु को इस प्रकार देखा ।
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प्रफुल्लान्भूरूहांस्तद्वत् फलितान् वीक्ष्य नित्यशः । कदाचित्पुनश्च तानेय सोऽपश्यत् विवर्जितान् १ । ४७ ।। अन्वयार्थ - प्रफुल्लान् = विकसित खिले हुये, भूरूहान् वृक्षों को तद्वत्
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