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________________ ३१० श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य में, शुचौ = पवित्र, पूर्व विदेहके = पूर्व विदेह में, मन्दरे = मन्दर पर्वत पर. च = और, सीतायाः = सीता, शैवलिन्या: - नदी के उत्तरे = उत्तरवर्ती, तटे = तट पर, महान् = विशाल. कच्छदेशः = कच्छदेश. (आसीत् = था) तत्र = उस देश में, महत् = बडा, क्षेमपुरं - क्षेमपुर नगर, भाति :सुशोगि होता हैता :- उस पर का, महान् = महान्, राजा = राजा, नामतः = नाम से. नलिनप्रभः = नलिनप्रभ, आसीत् = था। श्लोकार्थ - इस पुष्कराध द्वीप में पवित्र पूर्वविदेह क्षेत्र के मन्दर पर्वत पर और सीतानदी के उत्तर तट पर एक विशाल कच्छदेश था जिसमें क्षेमपुर नामक एक बड़ा नगर सुशोभित है इस नगर का महान राजा नलिनप्रभ था। न्यायकर्ता प्रतापाब्धिः सुखी धर्मरतस्सदा । राज्यं चकार स्वकृतैः सुकृतैः पूर्वजन्मनि ।।५।। अन्वयार्थ – पूर्वजन्मनि = पूर्व जन्म में, स्वकृतैः = स्वयं उपार्जित किये, सुकृतैः = पुण्यों के कारण, न्यायकर्ता = न्याय करने वाले, प्रतापारिधः = परमप्रतापी, सुखी = सुखी, सदा = हमेशा, धर्मरतः = धर्म में लगे हुये, (सः = उस राजा ने), राज्यं = राज्य. चकार = किया। श्लोकार्थ – पूर्वजन्म में स्वयं किये पुण्यकर्मों के फल से न्यायप्रिय, परमप्रतापी. सुखी और सदैव धर्म पालन में लगे राजा ने राज्य किया। सहस्रवन एकस्मिन् समये नन्दनामके । समागतोऽजितस्वामी तपसा भास्करोपमः ।।६।। श्रुत्वा तमागतं राजा परिवारसमन्वितः । मुदा तद्दर्शनाकाक्षी गत्वा तत्र ननाम तम् |७|| यतिधर्मास्ततः पृष्ट्वा श्रुत्वा वैराग्यमाप्तवान् । राज्यं समर्प्य पुत्राय स स्वयं दीक्षितोऽभवत् ।।८।। बहुभूपैस्समं तत्र दीक्षां सन्धार्य पायनीम् । एकादशाङ्गविभूत्या तपः षोडशभावनाः ||६||
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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