SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 324
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दशमः ३०७ से उस राजा ने सम्मेदपर्वत की अद्भुतकारी महिमा सुनी, और सुनकर वह अत्यंत प्रसन्न हुआ तभी वह राजा संघ के साथ सम्मेदाचल पर्वत के दर्शन अच्छी तरह से करने के लिये उत्सुक हो गया। द्वात्रिंशल्लक्षमनुजैः समं यात्रां चकार सः । प्राप्य विद्युद्वरं कूटमभिवन्द्य समर्च्य च । ६५ ।। षोडशप्रोक्तलक्षोक्तभव्यजीवैः नृपः । धृत्वा श्री मेघरथवंशजः ||६६ ।। समं दीक्षामविचलो दग्ध्वाऽघवनं पूर्ण शुक्लध्यानोप्रवहिनना । सम्यक्त्वादिगुणोपेतः पदं स प्राप शाश्वतम् ।। ६७ ।। = अन्वयार्थ – सः = उस राजा ने द्वात्रिंशल्लक्षमनुजैः = बत्तीस लाख मनुष्यों के समं = साथ, यात्रां = यात्रा को, चकार: = किया. विद्युद्वरं = विद्युद्वर नामक कूटं = कूट को, प्राप्य प्राप्त करे, अभिवन्द्य = वंदना करके, च और समर्च्य = पूजा करके, सः = उस, श्री मेघरथवंशजः श्रीमेघरथ के वंश में उत्पन्न, अविचलः अविचल, नृपः = राजा ने षोडशप्रोक्तलक्षोक्तभव्यजीयैः सोलह लाख भव्य जीवों के, समं = साथ, दीक्षां = मुनि दीक्षा को धृत्वा = धारण करके, शुक्लध्यानो वहिनना शुक्लध्यान रूपी उग्र तपाग्नि से पूर्ण = सारा, अघवनं = पाप समूह को, दग्ध्वा = जलाकर, सम्यक्त्वादिगुणोपेतः सम्यक्त्वादिगुणों से सहित होते, पदं = पद अर्थात् मोक्ष को, प्राप = प्राप्त = शाश्वतं = शाश्वत, कर लिया। श्लोकार्थ = = म - = उस राजा ने बत्तीस लाख मनुष्यों के साथ सम्मेदाचल की यात्रा की तथा विद्युद्वर कूट को प्राप्त कर उसकी वंदना की, पूजा की एवं श्रीमेघरथ के वंश में उत्पन्न उस अविचल राजा ने सोलह लाख भव्य जीवों के साथ मुनिदीक्षा धारण करके शुक्लध्यान रूप अग्नि से सारे कर्मसमूह को जलाकर सम्यक्त्व आदि गुणों से विभूषित हो शाश्वत सिद्ध पद को प्राप्त कर लिया।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy