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________________ ३०४ श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य = निश्चित ही, सम्यक्त्वं = सम्यक्त्व, जायते = हो जाता श्लोकार्थ ~ दानों में प्रधान चार दान विद्वज्जनों ने कहे हैं जिनसे ही यहाँ भव्यजीवों के लिये सम्यक्त्व हो जाता है। इति श्रुत्वा मेघरथः पुनः प्राह स मन्त्रिणः । अन्यानि विप्रदानानि चूत मे दानवित्तमाः ।।५६।। अन्वयार्थ – इति = इस प्रकार मंत्रि के कथन को, श्रुत्वा = सुनकर. सः । = वह, मेघरथः = मेघरथ राजा. पुन: = फिर से, मन्त्रिण: = मंत्रियों को. प्राह = बोला, दानवित्तमाः = हे दानधर्म को जानने वालों में श्रेष्ठ मंत्रियो!, मे = मुझको, अन्यानि = अन्य, विप्रदानि - ब्राह्मणदान को. ब्रूत = कहो। श्लोकार्थ – मंत्रि के इस प्रकार कथन को सुनकर वह मेघरथ राजा पुनः मंत्रियों से बोला हे दानधर्म को जानने वालों में श्रेष्ठ मंत्रियो! अन्य विप्रदानों का कथन भी मुझे कहो। सोमशर्मा द्विजस्तत्र प्राह तं शृणु भूपते । चतुर्दानानि पूर्वोक्तानीह सन्त्यधनेभ्यो वै ।।५७।। अन्वयार्थ – तत्र = वहाँ. सोमशर्मा - सोमशर्मा नामक, द्विजः = ब्राह्मण ने, तं = राजा को, प्राह = कहा, भूपते = हे राजन्! शृणु = सुनो, इह = यहाँ, पूर्वोक्तानि = पहिले कहे गये, चतुर्दानानि = चारों दान, वै = निश्चित ही, अधनेम्यः = निर्धनों के लिये, सन्ति = हैं। श्लोकार्थ – वहाँ अर्थात् राजा सभा में सोमशर्मा ब्राह्मण राजा से बोला हे राजन्! जो पहिले अभी चार प्रकार का दान बताया है वह निर्धनों के लिये है। भूपानामन्यदानानि दशप्रोक्तानि चागमे । शृणु भूपेन्द्र चैतानि मया संभाषितानि वै ।।५८।। कन्याश्वगजदास्यस्त्ररथालयधनान्यपि। भूरिशस्तिलगोधूमदशदानान्यनुक्रमात् ।।५६।।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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