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________________ ३० श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य = छद्मस्थ, अभूत् = रहे, वने = वन में, बिल्ववृक्षस्य = बेल के पेड़ के, अधस्तात् = नीचे, घातिक्षयं = घातिकर्मों के क्षय को, कृत्वा = करके, पुष्यकृष्णचतुर्दश्यां = पौष कृष्ण चतुर्दशी के दिन, जन्मभे :: अनक्षत्र में, सर्वतत्वप्रकाशकम् = सारे तत्त्वों को जानने वाले, केवलज्ञानं = केवलज्ञान को, सम्प्राप्य = प्राप्त करके, विभुः = सर्वविद् या सर्वव्यापक, भगवान् = भगवान्, द्वादशकोष्ठेषु = बारह कोठों में, स्थितैः = स्थित, यथासंख्यैः = जैसा क्रम है उसके अनुसार, अनगारगणेन्द्राद्यैः = अनगार गणधर आदि द्वारा, समाश्रितः = आश्रयणीय भगवान शीतलनाथ, दिनराडिव = सूर्य के समान, बनाजे - प्रकाशमान हुये। श्लोकार्थ – वह मुनिराज उग्र तप करते हुये तीन वर्ष तक छदमस्थ रहे। फिर एक दिन पौष कृष्णा चतुर्दशी के दिन जन्म नक्षत्र में बेलवृक्ष के नीचे घातिकर्मों का क्षय करके सारे पदार्थों को युगपत् समवसरण में अनगार गणधर आदि द्वारा यथाक्रम से आश्रय लिये जाते हुये वह सर्वज्ञ भगवान् शीतलनाथ स्वामी सूर्य के समान प्रकाशमान हुये। तदासौ भव्यसम्पृष्टः सर्वतत्त्वावबोधकम् । दिव्यघोष समुच्चरन् पीयूषक्षेपकं मुदा ।।४४।। पुण्यक्षेत्रेष्वशेषेषु सविलासं महाप्रभुः । शृण्वन् देव जयध्वनि विजहार यदृच्छया।।४५।। अन्वयार्थ ~ तदा = तभी, भव्यसम्पृष्टः = भव्य जीवों द्वारा पूछे गये, असौ = उन, देवः - भगवान्, महाप्रभुः = तीर्थंकर, शीतलनाथ ने, सर्वतत्त्वावबोधकं = सारे तत्त्वों का ज्ञान कराने वाला, मुदा = प्रसन्नता के हेतु से, पीयूषक्षेपकं = अमृत बरसाने वाला, दिव्यघोष = दिव्य उद्घोष याने धर्मोपदेश को, समुच्चरन् = उच्चारित करते हुये, सविलासं = हाव विलास सहित, जयध्वनि = जयध्वनि को, शृण्वन् = सुनते हुये, अशेषेषु = सम्पूर्ण, पुण्यक्षेत्रेषु = पुण्य क्षेत्रों में, यदच्छया = स्वतंत्रपने, विजहार = विहार किया।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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