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________________ नवमः देवों द्वारा की गयी जयकार ध्वनि को सुनते हुये शीघ्र ही तपोवन को चले गये। मार्गशुक्लदले तत्र च मूलप्रतिपत्तिथौ । सहस्रभूमिपैस्साधू स मुदा दीक्षितोऽभवत् ।।४०।। अन्वयार्थ – तत्र = वहाँ तपोवन में, सः = वह, सहस्रभृमिपैः = एक हजार राजाओं के. साधं = साथ, मार्गशुक्लदले = मागंशीष माह के शुक्ल पक्ष में, च = और, मूलप्रतिपत्तिथौ = मूल नक्षत्र सहित प्रतिपदा तिथि में, मुदा - प्रसन्नता से, दीक्षितः = मुनिधर्म में दीक्षित, अभवत् = हुये। श्लोकार्थ – तपोवन में एक हजार राजाओं के साथ मार्गशीर्ष शुक्ला प्रतिपदा के मूल नक्षत्र में प्रसन्नता पूर्वक वह मुनिधर्म में दीक्षित हो गये। अन्तर्मुहूर्ते तत्रैव मनःपर्ययमाप्तवान् । भिक्षायै स द्वितीयेनि ततः शैलपुरं ययौ ।।४१।। अन्वयार्थ – तत्र : उस तपोवन में, अन्तमुहूर्ते = अन्तमुहूंत में, एव = ही, मनःपर्ययम् = मनःपर्ययज्ञान, आप्तवान् = प्राप्त कर लिया, द्वितीये = दूसरे, अहिह्न = दिन, सः = वह, भिक्षायै = आहार भिक्षा के लिये, ततः = तपोवन से, शैलपुरं = शैलपुर को, ययौ = गये। श्लोकार्थ – उस तपोवन में अन्तर्मुहूत में ही उन्होंने मनःपर्ययज्ञान प्राप्त कर लिया तथा दूसरे दिन वह भिक्षा अर्थात् आहार लेने हेतु शैलपुर नगर में गये। पुष्यमित्राभिधो भूपः सत्र सत्कृत्य तं प्रभुम् । ददायाहारमस्मै सोऽपश्यदाश्चर्यपञ्चकम् ।।४२।। अन्वयार्थ – तत्र = उस शैलपुर में, पुष्यमित्राभिधः = पुष्यमित्र नामक, भूपः = राजा ने, तं = उन. प्रभु = मुनिराज को, सत्कृत्य = सत्कार करके, अस्मै = उनके लिये, आहारं = आहार-भोजन, ददौ = दिया, सः = उस राजा ने, आश्चर्यपञ्चकम् = पाँच आश्चर्यों को, अपश्यत् = देखा। अस्पै = जना प्रमं - मुनिराज कपुष्यमित्र नामक भ
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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