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________________ १४ श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य अन्वयार्थ - पूर्व = पहिले, प्राचीनकाल में, सिद्धानन्दरसेप्सुना = सिद्ध दशा में प्राप्त आनन्दरूपी रस के अभिलाषी, चक्रवर्तिना = चक्रवर्ती, भरतेन = भरत द्वारा, तथा = और, सगरेण = सगर द्वारा. एषा = यह सम्मेदशिखर सम्बन्धिनी. यात्रा = यात्रा, भक्त्या = भक्तिभाव से, कृता = की गयी, (आसीत् = थी)। श्लोकार्थ - पुरा काल में ही सिद्ध दशा में होने वाले आनन्द रूपी रस के अभिलाषी चक्रवर्ती भरत द्वारा और चक्रवर्ती सगर द्वारा भक्तिभाव सहित सम्मेदशिखर पर्वत की यात्रा की गयी थी। ततो यतीनामार्याणां श्रावकाणां पुनः पुनः । श्राविकाणां च सम्मानं कृत्वा श्रेणिक भूपतिः ।।३३।। महावीरं च पप्रच्छ महावीर दयानिधे । सम्मेदयात्राभायोऽध वृद्धो मम हृदि ध्रुयम् ||३४।। अन्वयार्थ · : = सार, ... = मुनियों का, आर्याणाम् = आर्यिकायों का, श्रावकाणां = श्रावकों का, च = और श्राविकाणां = श्राविकाओं का, पुनः-पुनः = बार-बार, सम्मानं = आदर या नमन, कृत्वा = करके, श्रेणिकभूपतिः = राजा श्रेणिक ने, महावीरं = तीर्थकर महावीर को. पप्रच्छ = पूछा, दयानिधे महावीर! = हे दयानिधान भगवन् महावीर!, अद्य = आज, मम = मेरे. हदि = मन में, सम्मेदयात्राभावः = सम्मेदशिखर यात्रा का भाव. ध्रुवम् = निश्चित ही, वृद्धः = बहुत बूढ़ा अर्थात् अधिक समय से चला आ रहा पुराना, (अभूत = हो गया है। श्लोकार्थ - भरतादि चक्रवर्ती की शिखर जी सिद्धक्षेत्र विषयक भक्ति भावना उपस्थापित करने के उपरान्त राजा श्रेणिक का वृतान्त प्रस्तुत है- राजा श्रेणिक ने यतियों, आर्यिकाओं, श्रावकों एवं श्राविकाओं का बार-बार यथोचित सम्मान करके भगवान महावीर से पूछा कि हे भगवन् दयानिधान! मेरे मन में
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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