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________________ प्रथमा - श्लोकार्थ जैसे किसी खान में खारा जल होता है तथा किसी खान में मीठा जल होता है वैसे ही किसी खान में रत्नों की ही उत्पत्ति होती है तो किसी खान में केवल धातु ही पाया जाता है । = = तथैव = वैसे ही, कर्मबन्धनात् संसारी, जीवः = कर्मबन्धन के कारण संसारी जीव, (भवति होता है), (तेषु = उनमें ), ये = जो, भव्याः = भव्यजीव (सन्ति हैं) तदाकरीभूतः = उनके लिये ख़ान स्वरूप भूम्याम = भूमि पर सम्मेदाख्यः = सम्मेदशिखर नामक नगेश्वरः = पर्वतों में ईश स्वरूप श्रेष्ठ पर्वत, ( वर्तते = है ) | - = J उद्धारकाः स्वसंघस्य प्रभूता यात्रिका ः पुरा । तत्पूजकास्तथा चोक्तास्तान्वक्ष्ये शृणुताधुना ||३१|| अन्वयार्थ - पुरा = प्राचीन काल में, स्वसंघश्च अपने-अपने यात्रा संघ के, उद्धारकाः - उद्धार करने वाले प्रभूताः = प्रचुर अर्थात् बहुत सारे, यात्रिकाः = यात्रीगण, संघपति तत्पूजकाः = सिद्ध क्षेत्र की आराधना करने वाले, (अभूवन् हो गये हैं), तथा च = और, (ते = वे), उक्ताः = शास्त्रों में कहे गये हैं, अधुना = अब. (अंहं = मैं), तान् = उनको, वक्ष्ये = कहता हूं, ( यूयं = तुम सब ), शृणुत = सुनो। = भरतेन सगरेण १३ इस संसार में कर्मबन्धन के कारण संसारी जीव हैं उनमें जो भव्य जीव हैं उनके लिये इस पृथ्वी पर सम्मेदशिखर सिद्धक्षेत्र सर्वश्रेष्ठ एवं रत्नों की खान रूप पर्वत है । श्लोकार्थ प्राचीनकाल में सिद्धक्षेत्र के पूजक और अपने-अपने यात्रा संघों का उद्धार करने वाले बहुत सारे यात्री हुये हैं, जो शास्त्रों में भी कहे गये हैं, उनको उसी प्रकार मैं कहता हूं। तुम सब सुनो। कृता तथा भक्त्या पूर्व यात्रेषा चक्रवर्तिना । सिद्धानन्दरसेप्सुना । । ३२।।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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