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अष्टमः
___२३१ श्लोकार्थ -- उस राजा की कनकवती नामक एक अतिशय पुण्यशालिनी
रानी थी जिसके गर्भ में अच्युत नामक सोलहवें स्वर्ग से च कर मिन्द्र देव आकर पद्मनाभ नामक उसका पुत्र हुआ। जो अपने सदगुणों से प्रसिद्ध था उसने शुभकर्मों
के उदय से अल्पकाल में ही सुखकर विद्या को पढ़ लिया । राज्यं तस्मै स तारूण्ये दत्त्वा श्री कनकप्रभः ।
स्वयं विरक्तहृद्भूत्वा मनोहरवनं गतः ।।१०।। अन्वयार्थ :- (पुत्रस्य = पुत्र की), तारूण्ये = तरुण अवस्था प्राप्त होने
पर, सः = वह. श्रीकनकप्रभः = श्रीसम्पन्न कनकप्रभ राजा, तस्मै = पुत्र के लिये, राज्यं = राज्य को, दत्त्वा = देकर, स्वयं = खुद, विरक्तहृद् - विरक्त मन वाला, भूत्वा = होकर,
मनोहर वनं = मनोहर वन को, गत: = चला गया। श्लोकार्थ – पुत्र के तरूण होने पर उसके लिये राज्य देकर वह राजा
___ स्वयं विरक्त मन वाला होकर मनोहर वन को चला गया। तत्रैव श्रीधरनामानं मुनिं नत्वा प्रसन्नधीः ।
तत्सकाशात्सुजग्राह जैनी दीक्षां तपोवने ||११|| अन्वयार्थ – तत्रैव = उस ही, तपोवने = मनोहर वन में, प्रसन्नधीः =
प्रसन्नचित्त बुद्धिमान् राजा ने, श्रीधरनामानं = श्रीधर नामक. मुनि = मुनि को. नत्वा = प्रणाम करके, तत्सकाशात् = उनके पास से, जैनी = इन्द्रियों पर विजय कराने वाली, दीक्षा =
मुनिदीक्षा को, सुजग्राह -- अच्छी तरह ग्रहण कर लिया। श्लोकार्थ – उसी मनोहर तपोवन में उन प्रसन्नचित्त बुद्धिमान् राजा ने
श्रीधर नामक मुनि को प्रणाम करके उनके पास से इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कराने वाली जैनेश्वरी दीक्षा को अङ्गीकार
कर लिया। तदा स पद्मनाभोऽपि यथोक्तानि जिनागमे ।
श्रावकाणां व्रतान्युच्चैः तथापालयदीश्वरः ।।१२।। अन्वयार्थ – तदा = तब, सः = उस. पद्यनाभः = पद्यनाभ, ईश्वरः = राजा
ने. अपि = भी, श्रावकाणां = श्रावकों के, उच्चैः = उत्कृष्ट,