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________________ १० श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य - दत्त. कुन्दप्रभः = कुन्दप्रभ, च = और, ततः -- तदनन्तर, सुप्रभः = सुप्रग. ततश्च = और उसके बाद, चारूश्रेणिकः = चारूश्रेणिक, भावदतकः = गावदत्तक या भवदत्त, अविचलः = अविचल, तथा = और, आनन्द श्रेणिकः = आनन्दश्रेणिक. सुन्दरः = सुन्दर, रामचन्द्रः = रामचन्द्र, तथा अमरश्रेणिक: = और अमर श्रेणिक, सुवरान्ता = सुन्दर और श्रेष्ठ है अन्त जिनका, इमे = ऐसे ये, भव्याः = भव्यजन. संघाधिपतयः = तीर्थयात्रा संघ के अधिपति-संघप्रमुख, स्मृताः = स्मरण किये जाते हैं। श्लोकार्थ - संघपति प्रभाश्रेणिक के बाद क्रमशः ललितद्योतक, दत्तश्रेष्ठी, कुन्दप्रभ, दत्तशुभ (चरश्रेणिक). दत्त श्रेणिक, सोमप्रभ, सुप्रभ, चारूश्रेणिक, भावदत्तक या भवदत, अविचल, आनंदश्रेणिक, सुन्दर, रामचन्द्र, अमर श्रेणिक आदि सुवरान्त अर्थात् जिनका अंतिम समय सुन्दर व श्रेष्ठ है, ऐसे ये भव्य जीव तीर्थयात्रा संघों के संघपति हुये। एकैकस्मिस्तत्रा कूटे मुक्ताः सिद्धा ह्यनन्तकाः । सर्वः शैलवरस्तस्मादयं द्वादशयोजनः ।।२४।। अन्वयार्थ - अयं :- यह, शैलवरः = पर्वतों में श्रेष्ठ सम्मेदशिखर, सर्वः = सारा, द्वादशयोजनः = बारह योजन विस्तार वाला, (प्रोक्तः = कहा गया है), तत्र = वहाँ, एकैकस्मिन कटे = उस पर्वत पर विमान एक-एक कूट अर्थात् शिखर पर, अनन्तकाः = अनन्त मुनिवर्य, मुक्ताः = मुक्त अर्थात् जीवनमुक्त केवली परमात्मा अर्हन्त के रूप में, (अवर्तत = रहे), (च = और). तस्मात् = उसी पर्वत से, सिद्धाः = सिद्ध परमात्मा. (बभूवुः - हुये)। श्लोकार्थ - सम्मेदशिखर पर्वत जो सभी पर्वतों में श्रेष्ठ है, का विस्तार बारह योजन है। इस पर्वत की प्रत्येक टोंक पर अनन्त मुनिराज मुक्त हुये हैं और इसी पर्वतराज से सिद्धत्व को प्राप्त होकर सिद्ध हुये हैं।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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