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________________ सप्तमः २१५ श्लोकार्थ .. उसके बाद उद्योतक राजा ने भक्तिभाव से सम्मेदशिखर पर्वत की यात्रा की, उस राजा की शुभ को कथा मैं कहता हूं। जम्बूद्वीपे भारलेऽस्मिन क्षेत्रे वत्सोपवर्तने । कौशाम्बी रम्या दिव्योपवनशोभिता ||६७।। विचित्रवापिका तद्वत् रम्या हि सरसीयुत् । वारिभिस्सहिता यत्र पौराः पुण्यविशारदाः ।।६८।। शीलसम्यक्त्वसम्पन्नास्सर्वे सद्गुणशालिनः | जैनधर्मोज्ज्वला: शुद्धा दयादिमलमानसाः ।।६६ ।। अन्वयार्थ – जम्बूद्वीपे - जम्बूद्वीपवर्ती, अस्मिन् = इस, भारते = भारत नामक, क्षेत्रे = आर्य क्षेत्र में, वत्सोपवर्तने = वत्स देश में, रम्या = रमणीय, दिव्योपवनशोभिता - दिव्य जानवरों से सुशोभित, कौशाम्बीनगरी = कौशाम्बी नामक नगरी, (आसीत् = थी), (तत्र = वहाँ). तद्वत् = नगरी के समान, हि = ही, रम्या - रमणीय, सरसीयुता - झरनों से युक्त. वारिभिः = जल से, सहिता = सहित. विचित्रवापिका = आश्चर्यकारी बाबडी, (आसीत् = थी), यत्र = जिस नगर में, सर्वे = सारे, पौरा: प्रजाजन. पुण्यविशारदाः = पुण्य कार्य करने में चतुर, शीलसम्यक्त्वशालिनः = शील और सम्यक्त्व का पालन करने वाले, सद्गुणशालिनः- सम्यक गुप्पों के धारी, दयाविमलमानसाः = दया के कारण निर्मल चित्त वाले, जैनधर्मोज्ज्वला: - जैनधर्म का पालन करने में उज्ज्वल कीर्ति वाले, च = और, शुद्धाः -- पवित्र, (न्यवसन् - रहते थे)। श्लोकार्थ – जम्बूद्वीपवर्ती इस भरतक्षेत्र के वत्स नामक देश में अत्यंत रमणीय और दिव्य उपवनों से सुशोभित एक कौशाम्बी नगरी थी। वहाँ नगर के समान ही रमणीय झरनों से युक्त तथा जल से भरी हुई आश्चर्य कारक बावड़ी थी। जिस नगर में सारे प्रजाजन पुण्य कार्य करने में प्रवीण, शील-सम्यक्त्व का पालन करने वाले. सद्गुणों के धारी, दया से निर्मल चित्त वाले, जैनधर्म का पालन करने में उज्ज्वल कीर्ति वाले और पवित्र थे।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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