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________________ २०४ श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य अन्वयार्थ – अथ := अनन्तर, ज्येष्ते = जेठ महिने में शुक्लद्वादश्यां = शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन, पुण्यसंचयात् = संचित पुण्योदय से, सा = उस, देवी = रानी ने, परमेशानं = परम ईश अर्थात् तीर्थकर, वैभुवनप्रियम् = तीनों लोकों में सबको प्रिय, पुत्रं = पुत्र को, असूत् = उत्पन्न किया। श्लोकार्थ – इसके बाद ज्येष्ठ शुक्ला बारहवीं के दिन संचित पुण्य के कारण उस रानी ने तीन लोक में सभी को प्रिय परम ईश अर्थात् तीर्थकर पुत्र को पैदा किया। स्वावधेर्वासवो ज्ञात्वा भगवज्जन्म तत्क्षणम् । तत्रागतस्सुरैस्सार्ध जयनिर्घोषनिर्भरैः ||३२|| स मायाबलतस्तस्मात् प्रसूतिभवनात्प्रभुम् । बालाकृतिमुपादायाथ स्वर्णशैलं तथागमत् ।।३३।। पूर्णैः क्षीरोदसलिलैः स्वर्णकुम्भैस्सुविस्तृतैः । अष्टोत्तरसहनैश्च स चक्रेऽभिषवं प्रभोः ।।३४।। अन्वयार्थ – स्वावधः = अपने अवधिज्ञान से, भगवज्जन्म = भगवान् का जन्म, तत्क्षणं = उसी क्षण, ज्ञात्वा = जानकर, वासवः = इन्द्र, जयनिर्घोषनिर्भरैः = जय-जयकार की घोषणा से युक्त, सुरैः = देवों के, साधू = साथ, तत्रा = वहाँ, आगतः = आ गया, सः = वह इन्द्र, मायाबलतः = माया के बल से, तस्मात् = उस. प्रसूतिभवनात् = प्रसूतिगृह से, बालाकृतिम् = शिशु स्वरूप, प्रभुं = प्रभु को, उपादाय -- लेकर, अथ = अनन्तर. स्वर्णशैलं = स्वर्ण खचित मेरू पर्वत को, अगमत् = चला गया, तथा च . और, स = उसने, सुविस्तृतैः = विशाल. क्षीरोदसलिलैः = क्षीरसागर के जल से, पूर्णैः = भरे हुये, अष्टोत्तरसहस्रैः = एक हजार आठ, स्वर्णकुम्भैः = सोने के कलशों से, प्रभोः = भगवान का, अभिषवं = अभिषेक, चक्रे = किया। श्लोकार्थ – भगवान का जन्म हो गया है यह समाचार अपने अवधिज्ञान से तत्क्षण जानकर इन्द्र जय जयकार की उद्घोषणा करते
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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