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________________ ૧૬૦ श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य समुत्सुकम् = उत्सुक-उत्साहित, अस्ति = है, मुनिः = मुनिराज ने. तं = उसको, प्राह = कहा. भूमीश = हे राजन!. तव = तुम्हारी, यात्रा = तीर्थवन्दना रूप यात्रा, भविष्यति = हो जायेगी। श्लोकार्थ – मुनिराज ने कहा-हे राजन! सम्मेद शिखर की वन्दना करने से मुझे यह चारण ऋद्धि प्राप्त हुई है। मुनिराज से यह सुनकर राजा फिर बोला- हे मुनि मेरा मन सोटमार की यात्रा करने के लिये उत्सुक हो रहा है। तब मुनिराज ने कहा-हे राजन! तुम्हारी तीर्थवन्दना स्वरूप यात्रा अवश्य हो जायेगी। तदा मुदा समागत्य गृहं यात्रोन्मुखोऽभवत् । संघसम्मानकृद्राजा कोट्युक्तमनुजैः सह ||७|| गायकान्वादकांस्तद्वत् नर्तकीश्च नर्तकांस्तथा । सार्थकान्संविधायाथ दुन्दुभीश्चभिनादयन् ।।।। उत्तुङ्गध्वजशोभायो महोत्सवसमन्वितः । सम्मेदयात्रामकरोत् दिनैः कतिपयैर्नृपः ||१|| अन्ययार्थ - तदा = तब, गृहं = घर, समागत्य = आकर, संघसम्मानकद्राजा = चतुर्विधसंघ का सम्मान करने वाला राजा, मुदा = प्रसन्नता के साथ, कोट्युक्तमनुजैः = एक करोड़ मनुष्यों के. सह = साथ, यात्रोन्मुखः = सम्मेदशिखर की यात्रा के लिये तत्पर, अभवत् = हो गया। अथ = फिर, गायकान् = गायकों को, दादकान् = तबला आदि बजाने वालों को, च = और, नर्तकीः = नृत्याङ्गनाओं को नर्तकान = नर्तकों को, सार्थकान् = साथ में चलने वाला, संविधाय = करके, तथा च = और. दुन्दुभीः = नगाड़ों को, अभिनादयन् = बजवाते हुये, उत्तुङ्गध्वजशोभाढ्यः = ऊँचे ध्वज की शोभा से सम्पन्न, महोत्सवसमन्वितः = महान् उत्सव से संयुक्त होता हुआ, नृपः = राजा ने, कतिपयैः = कुछ, दिनैः = दिनों से, सम्मेदयात्राम् = सम्मेदशिखर की यात्रा को, अकरोत् = कर लिया।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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