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________________ १७६ श्लोकार्थ श्लोकार्थ - तब स्वप्नों को सुनकर प्रीति से रोमाञ्चित शरीर वाले और हर्षोदय को प्राप्त राजा ने रानी को कहा- हे बुद्धिमति! सुनो तुम सर्वाधिक भाग्यशालिनी हो तुम्हारे पेट-गर्भ में जगत् का स्वामी तीर्थङ्कर होने वाला पुण्यशाली देव आ गया है। अरे! तुम उसे समय आने पर किसी शुभ दिन साक्षात् देखोगी । इति श्रुत्वा तदा देवी महानन्दमवाप सा । - गर्भिणीं तां सिषेवेऽथ प्रतिघनं पुलोमजा | |३५|| अन्वयार्थ - इति = ऐसा श्रुत्वा = सुनकर, सा उस देवी = रानी ने, महानन्दम् = विपुल आनन्द को अवाप = प्राप्त किया, अथ = फिर. तदा = तब, पुलोमजा = इन्द्राणी ने प्रतिघस्रं = प्रतिदिन, तां = उस, गर्भिर्णी = गर्भिणी रानी की, सिषेवे सेवा की। = श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य स्वामी तीर्थङ्कर, महान् सर्वोत्कृष्ट पुण्यवाला, देवः = देव, समायातः = आ गया है, भोः = अरे! त्वं तुम, समयात् = समय से, अतुले = अतुलनीय, दिने = दिन, तं = उसको, समीक्षिष्यसे == अच्छी तरह साक्षात् देखोगी । 11 अन्वयार्थ = राजा से इस प्रकार सुनकर वह रानी प्रचुर आनन्द को प्राप्त हुई। इसके बाद तभी से इन्द्राणी ने प्रतिदिन उस गर्भिणी रानी की सेवा की। = शक्रसेव्यो नृपश्चासीदानन्द दुन्दुभिस्वनः । रत्नवृष्टिः प्रतिदिनं त्रिकालेऽपि च वर्षति ||३६|| च = और, नृपः - राजी, अपि भी. शक्रसेव्यः = इन्द्र से सेवित, आसीत् = हुआ था, (सर्वत्र = सभी जगह ), आनन्ददुन्दुभिस्वनः = आनन्ददायक नगाड़ों की ध्वनि, ( आसीत् = थी), च = और, प्रतिदिनं = प्रत्येक दिन, त्रिकाले तीन समय, रत्नदृष्टिः = रत्नों की बरसात, वर्षति - = बरसती थी । श्लोकार्थ – और राजा भी इन्द्र द्वारा सेवित हुआ। उस नगर में सभी जगह आनन्ददायक नगाड़ों की ध्वनि होती थी तथा प्रत्येक दिन तीन बार रत्नों की बरसात बरसती थी।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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