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________________ श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य करके, ध्यात्वा च = और उसका ध्यान कर, सम्मेदशैलमाहात्म्यं -- सम्मेदाचल का महत्त्व, प्रकटी क्रियते = प्रकट किया जाता श्लोकार्थ . समवसरण में भगवान के उपदेश को धारण करने वाले मुनि समूह में अग्रणी गुरू गणधर और जिनवाणी को प्रणाम कर उसकी स्तुति करके और उसका एकाग्रचित्त हो ध्यान करके मैं देवदत्त कवि सम्मेदशिखर पर्वत का माहात्म्य अर्थात् महिमा गान प्रगट करता हूं। जिनेन्द्रभूषणयतिर्मुनिर्धर्मपरायणः। तस्योपदेशात्सम्मेदवर्णने मतिरूत्सुका ।।३।। अन्वयार्थ - धर्मपरायणः = धर्म में अनुरक्त, मुनिः = मुनिराज. (नाम्ना = नाम से), जिनेन्द्रभूषणयतिः = जिनेन्द्रभूषणयति, (आसीत् = थे), तस्य = उनके, लादेशात् = उपदेश से, (मे = मेरी), मतिः = बुद्धि, सम्मेदवर्णने = सम्मेदशिखर के वर्णन करने के विषय में, उत्सुका = प्रयत्नशील या उत्कण्ठित हुई है। श्लोकार्थ - धर्म साधना में अनुरक्त व तत्पर मुनिराज जिनेन्द्रभूषणयति का उपदेश सुनने से मुझ कवि की बुद्धि अब सम्मेदशिखर गामक सिद्धक्षेत्र का वर्णन करने में उत्कण्ठित-उत्साहित हुई है। भट्टारकपदस्थायी स यतिः सत्कविप्रियः । भवाब्धितारणायेह सत्कथापोतसज्जकः ।।४।। अन्वयार्थ - इह = मेरे इस सम्मेदशिखरमाहात्म्य वर्णन में, सत्कविप्रियः - सुकवियों में प्रशंसनीय, भट्टारक पदस्थायी = भट्टारक के पद पर प्रतिद्धापित, स यति = वे जिनेन्द्रभूषण यति, भवाब्धितारणाय = संसार रूपी समुद्र से तारने के लिये, (मह्यं = मेरे लिये), सत्कथापोतसज्जकः = सम्यक कथा रूपी नाव के नाविक, (स्यात् = हों)
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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