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________________ श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य = उच्चपुण्यं को, बद्ध्वा = बाँधकर, उत्तमम् = उत्कृष्ट, तपः -- तपश्चरण, चकार = किया। श्लोकार्थ - स्वयंप्रभ जिनेश्वर के समवसरण में उन मुनिराज ने ग्यारह अगों का ज्ञान प्राप्त कर उन्हें धारण किया और सोलह भावनायें भाकर तीर्थकर नामकर्म नामक उच्च पुण्य को बाँधकर उत्कृष्ट तपश्चरण किया। अन्ते सन्यासविधिना प्राणत्यागं विधाय सः । पूर्वप्रैवेयके तत्र सुदर्शनविमानके ।।७।। अहमिन्द्रो बभूवास्य त्रयोविंशतिसमुहकैः । आयुः षडगुलोन्मानं शरीरं च प्रकीर्तितम् ||८|| अन्वयार्थ - अन्ते = अन्तिम समय में, सः = वह, सन्यासविधिना = सन्यासमरण से, प्राणत्याग - प्राणों का त्याग, विधाय = करके, पूर्व ग्रैवेयके = प्रथम प्रैवेयक में, तत्र = उसमें, सुदर्शनविमानके :- सुदर्शन नामक विमान में, अहमिन्द्र = अहमिन्द्र, बभूव = हुआ, अस्य = इस देव की, आयुः = आयु, त्रयोविंशतिसमुद्रकैः = तेवीस सागर के प्रमाण से, शरीरं च == और देह, षडङ्गुलोन्मानं = छह अगुल उन्मान वाला, प्रकीर्तितम् = कहा गया है। श्लोकार्थ - पर्याय के अन्तिम समय में वे मुनिराज सन्यासमरण की विधि से प्राणों का त्याग करके प्रथम प्रैवेयक के सुदर्शन नामक विमान में अहमिन्द्र हुये। वहाँ उनकी आयु तेवीस सागर थी और शरीर छह अङ्गुल उन्मान वाला था। शुक्ललेश्यासमायुक्तस्त्रयोविंशतिसहस्रकैः । गतैरब्दैः सः जग्राह मानसाहारमुत्तमम्।।६।। अन्वयार्थ - सः = वह अहमिन्द्र, शुक्ललेश्यासम्पन्नः = शुक्ललेश्या से । सम्पन्न होकर, त्रयोविंशतिसहस्रके: = तेवीस हजार, अब्दैः = वर्ष, गतैः = बीत जाने से, उत्तमम् = उत्कृष्ट, मानसाहारम् = मात्र मानसिक अमृत का आहार, जग्राह = ग्रहण करता था।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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