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________________ குமிழி***ழககககக ר -७ 卐 卐 5 यरम्मि वणिदे जह ण वि रण्णो वण्णणा कदा होदि । देहगुणे शुव्वते पण केवलिगुणा शुदा होंति ॥ ३०॥ नगरे वर्णित यथा नापि राज्ञो वर्णना कृता भवति । 卐 देहगुणे स्तूयमाने न केवलिगुणाः स्तुता भवन्ति ॥ ३० ॥ आत्मख्यातिः – तथाहि अर्थ — जैसे नगरका वर्णन करते संते राजाका वर्णन नाहीं किया होय है, तैसा बेहका फ्रफ़ फफफफफफफफफफफ 卐 नित्यमविकारसुस्थितसर्वाङ्गगमपूर्वसहजलावण्यम् । अक्षोभमिव समुद्रं जिनेन्द्ररूपं परं जयति ||२|| 卐 गुणकूं स्तवते संते केवलीके गुण नाहीं स्तवनरूप कीये होय हैं। इसही अर्थका टीकाविर्षे प्रथम 卐 काव्य है । आर्याछन्दः प्राकारकवलिताम्बरमुपवनराजीनिगीर्णभूमितलम् । पिवतीव हि नगरमिदं परिखावलयेन पातालम् ॥ १ ॥ फ्र फ इति नगरे वर्णितेपि राज्ञः तदधिष्ठातृत्वेपि प्राकारोपवन परिखादिमत्वाभावाद्वर्णनं न स्यात् तथैव अर्थ -- यह नगर है सो कैसा है ? प्राकार कहिये कोट, ताकरि तो मस्या है आकाश जाने क 5 ऐसा है। भावार्थ-कोट ऊंचा बहुत है. बहुरि उपवन कहिये बाग, तिनिकी राजी कहिये पंक्ति, 卐 तिनकरि निगल्या है भूमितल जाने ऐसा है । भावार्थ --सर्वतरफ वागनितें पृथ्वी छाय रही है. फ बहुरि कैसा है ? कोटके चौगिरद खाईका वलयकरि मानू पातालकूं पीवै ही है, ऐसा है । 卐 भावार्थ - खाई ऊडी बहुत है । ऐसें नगरका वर्णन करते संते राजा याकै आधार है तौऊ, कोट 卐 बाग खाई आदि सहित राजा नाहीं है । तातें राजाका वर्णन याकरि नाही होय है । तैसैंही तीर्थंकरका स्तवन शरीरका स्तवन कीये नाहीं होय है, ताका भी काव्य है । 卐 卐 卐 卐 卐
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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