SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ । + + + इनहि आदि शुभ अर्थ समय बचके सुनिये बहु। अर्थ समयमें जीवनाम है सार सुनहु सहु ॥ तातें जु सार विन कर्ममल शुद्ध जीव शुधनय कहै। इस ग्रन्थमांहि कथनी सवै समयसार बुधजन गहै ॥४॥ __ दोहा-नामादिक छह ग्रन्थमुख, तामैं मंगल सारं । विघनटरन नास्तिक हरन, शिष्टाचार उचार ॥५॥ है. ऐसे मङ्गलपूर्वक प्रतिज्ञा करि, श्रीकुदकुंद नाम आचार्यकृत गाथाबंध समयप्राभूत नाम ग्रंथ ॥ है, ताकी संख्यात टीका भी अपृतनंद आचार्यकृत आत्मख्याति नाम है, ताकी देशभाषामय वच卐 निका लिखिये है। तहां इस प्रथका होनेका संबंध ऐसा है-जो श्रीवर्धमानस्वामी अंतिम ... तीर्थंकरदेव सर्वज्ञ वीतराग परम भट्टारककू निर्वाण पधारे पीछे पांच श्रुतकेवलि भये । तिनमें अंतके .. ॐ श्रुतकेवली श्रीभद्रयाहुस्वामी भये, तहांताई तो द्वादशांगशास्त्रके प्ररूपणते व्यवहारनिश्चयात्मक 1- मोक्षमार्ग यथार्थ प्रवर्तवो ही किया। पीछे कालदोष अंगनिका ज्ञानकी व्युच्छित्ति होती गई अर केतेक मुनि शिथिलाचारी भये, तिनिमें श्वेताम्बर भये, तिनिने शिथिलाचार पोषनेकू न्यारे सूत्र जज बनाये । तिनिमें शिथिलाचार पोषनेकी अनेक कथा लिखि अपना संप्रदाय दृढ किया, सो तो अवतांई प्रसिद्ध है। बहुरि जे जिनसूत्रकी आज्ञामें रहे तिनिका आचार भी यथावत् रहा, 卐 प्ररूपणा भी यथावत् रही, ते दिगम्बर कहाये । तिनिका सम्प्रदायमें श्री वर्धमानस्वामीकू निर्वाण ॥ .. पधारे पीछे छहसै तियासी वर्ष पीछे दूसरे भद्रबाहुस्वामी आचार्य भये । तिनिकी परिपाटीमें 9 केतेक वर्ष पीछे मुनि भये तिनिने सिद्धांतनिकी प्रवृत्ति करी सो लिखिये है। ज एक तो धरसेन नामा मुनि भये, तिनि• अग्रायणीपूर्वका पांचमा वस्तुका महाकर्मप्रकृति नामा 乐乐 乐乐 乐乐 乐乐 $ $$ $$ ।卐
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy