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॥ नमः सिद्धम्यः ॥ श्रीमदाचार्य कुंदकुंदस्वामि विरचित्
समयप्राभूत श्रीमद् अमृतचन्द्रसूरि विचित आत्मल्याति संस्कृतीका,
स्व. पं० जयचन्द्रजीकृत हिन्दी वचनिका सहित दोहा-श्रीपरमातमकू प्रणमि, सारद सुगुरु मनाय ।
समयसारशासन करूं, देशवचनमय भाय ॥१॥ शब्दब्रह्म परब्रह्मकै, वाचकवाच्यनियोग ।
मङ्गलरूप प्रसिद्ध है, नेम धर्म धन भोग ॥२॥ चौपाई-नयनय लहइ सार शुभवार । पयपय दहइ मारदुखकार ॥
लयलय गहइ पारभवधार । जयजय समयसार आविकार॥३॥ ॥ छप्पय शब्द अर्थ अरु ज्ञान समयत्रय आगम गाये।
मत सिद्धान्त अरु काल भेद त्रय नाम बताये॥
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